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- सं. मुनि सुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ
अज्ञात कवि रचित प्रस्तुत स्तवनामां प्रभुवीरने नमस्कार करीने सम्यक्त्व पामवानी प्रक्रियाने कर्ताओ ओछा पण सुंदर शब्दोमां रजू करी छे. सम्यक्त्व पांमता जीवना त्रण करण- सम्यक्त्वना प्रकार-कयुं सम्यक्त्व केटली वार होय ? कया कया गुणठाणे होय ? अने केटली वार पमाय वगेरे बाबतीने अने अंते सम्यक्त्वना ६७ बोलने बालभोग्य शैलीमां वर्णव्या छे. कर्तानो क्यांक -क्यांक करेलो श ने बदले स नो प्रयोग अने अनुस्वारोनो पण छूटा हाथे करेलो प्रयोग देखाय छे.
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अज्ञातकर्तृक श्रीसम्यक्त्वस्तवन
प्रत १८९९मां मुमाइ (मुंबई) बंदरे श्री गोडिपार्श्वनाथना जिनालयमां लखायेल छे.
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अनुसन्धान ४५
कर्ता सम्बन्धी कोईपण नोंध अन्य कोई ग्रन्थमां मळी नथी. प्रतनी झेरोक्ष श्रीनेमि - विज्ञान - कस्तूरसूरिजी ज्ञानभण्डारमां संग्रहीत श्रीनेमिचंद मेलापचंद झवेरी (सुरत- वाडी) ना उपाश्रयनी छे. प्रतनी स्थिति - अक्षर सुंदर छे. त्रण पानानी प्रस्तुत कृति आपवा बदल बन्ने भंडारना व्यवस्थापकोनो आभार. बीजी प्रति न मळता एक प्रति उपरथी आ रचनानुं संपादन थयुं छे.
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[नोंध : आ रचनानी अन्तिम कडीमां 'पुण्य महोदय' एवो शब्द छे, ते कदाच स्तवनना कर्ताना उल्लेखपरक होय तो सम्भावित छे. पुष्पिकामां "बेहेन राजाबाई पठनार्थ" एम उल्लेख छे, ते प्रख्यात शेठ प्रेमचंद रायचंदनां मातुश्री राजाबाई (राजाबाई टावर वाळां) तो न होय ? स्तवन, जैन दर्शनना तात्त्विक पदार्थ ‘सम्यकत्व'नौ प्रक्रियानुं, सामान्य के अजैन वाचक माटे गहन लागे तेवुं वर्णन, जैन शास्त्रीय परिभाषामां, आपे छे. -शी.]
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