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सप्टेम्बर २००८
॥ ६॥ श्री गुरुभ्यो(भ्यो) नमः ।। (दु)दूहा - समकितदायक वीरना, पद पंकज प्रणमेवि,
समकितसार संखेपथी, कहेंसु तवन करेवि स्वामि तुझ दरिसन विना, भमिओ काल अनंत, मोहादिक वैरी वसें, चहुं-गति दुःख दुरंत ... २
ढाल-१, राग - तेह पुरुष हवें वीनवेंजी ।। कोइक जीव तिहां लहेंजी, कर्म तणो स्थितिघात, यथाप्रवृत्तिकरणे करीजी, पल्योपल (नद्योपल?) दृष्टांत,
उपगारी अरिहा, वंदो वीर जिणंद.... १ (ए आंकणी०) तिहां पण गांठ अभेदतोजी, रागर्ने द्वेष प्रणांम, समकित जीव नवी(वि) लहेंजी, तुझ दरी(रि)सण सुखधाम, उपगारी.... २ पंथी पिवीली न्यायथीजी, कोइक सन्नि पजत्त, पुद्गलअर्द्धपरावर्तेजी, पहेलुं करण संपत्त,
उपगारी.... ३ आयु वजित सातनीजी, कर्मस्थिति अवसेस, न्यूंन कोडाकोडी(डि) रहेंजी, निर्जरा योग विशेस उपगारी.... ४ करण अपूरव मोगरेंजी, करतो गंठी(ठि) नो भेद, अंतरमुहुर्त विशुद्धतोजी, अनिवृत्तिकरण सुवेद, उपगारी.... ५ अनिवृत्तिकरणें रह्योजी, स्थिति होइं बिहुं तांम, अंतरमुहुर्तनी भोगवेंजी, पहेंली आतमराम,
उपगारी.... ६ अनुदित बीजी तें रहेंजी, अंतरकरण संत, पहिलें समयें तव होइंजी, उपशमसमकितवंत, उपगारी.... ७ ओषध सम ते समकितेंजी, रही स्थितिना बण्य भाग, कोद्रव सम पहेंलो करेंजी, शुद्ध ते समकित भाग, उपगारी.... ८ शुद्धाशुद्ध बीजें रहेंजी, एहवें काल पहुत्त, शुद्ध पुंज उदय होइंजी, खयोपशमें संयुत्त, उपगारी.... ९ शुद्ध कर्या जिम कोद्रवाजी, न करें तें मोहविकार, जातिस्वभाव नवी तजेंजी, समकित तिम अतिचार, उपगारी.... १० अशुद्धपुंजे मिथ्यामतीजी, शुद्धाशुद्ध ते मीस, इम भाखे जगनो गुरुजी, वीर विभू जगदीस, उपगारी..., ११
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