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इति स्वाध्यायः ॥ श्री रयणसेहरसूरि कृत
श्री गौतमस्वामी रास : परिचयात्मक भूमिका
-सं. पं. शीलचन्द्रविजय गणि मध्यकालीन राससाहित्यमां तेमज सांप्रत जैन जगत्मां उपाध्याय श्री विनयप्रभ - रचित " गौतमरास" (र. स. १४१२) अतिविख्यात छे. आम तो, गुरु गौतम स्वामीना गुणकीर्तननी नानी मोटी असंख्य रचनाओ (मध्यकालीन) प्राप्त छे. परंतु ते सर्वमां प्रमुख स्थाने तो आ रास ज बिराजे छे, आ प्रकारना बीजा रास अद्यावधि जाणमां के प्रकाशमां नथी आव्या.
थोडा वखत अगा प्रस्तुत "श्रीरत्नशेखरसूरि-रचित गौतम रास" नी एक हस्तप्रतिनी झेरोक्ष नकल मारा हाथमां आवी. ए जोतां एक विशिष्ट वस्तुनी प्राप्तिनो आनन्द तथा अचंबो अनुभव्या. श्री विनयप्रभवाचक - कृत गौतम रास करतां फक्त सात ज वर्ष पूर्वे, वि. सं. १४०५मां, रचायेलो आ रास आजपर्यंत अज्ञात ज रह्यो छे. केम के आ रासनुं चलण जैन संघमां परंपराथी जळवायुं नथी. जो आवुं चलण होत तो, विनयप्रभ - कृत रासनी, विविध भंडारोमांथी, विभिन्न समये लखाएली अनेक प्रतिओ मळी आवे छे, तेम आ रासनी प्रतिओ पण मळती ज होत. ज्यारे अत्यारे तो आनी मात्र एक ज प्रति प्राप्त थाय छे, थई छे. जेनी नकल मारा सामे पडी छे. अन्यान्य भंडारोनां सूचिपत्रो जोयां, परंतु क्यांय आनी प्रति होय तेवुं ध्यानमां नथी आव्युं. कोई अभ्यासीना ध्यानमां होय / आवे, तो तेनी विगत जणाववा कष्ट उठावे.
मने मळेली नकल मारा मित्र कविवर्य मुनिराज श्री धुरंधरविजयजी द्वारा मळी छे. तेमणे पोताना परिभ्रमण दरमियान वल्लभीपुरता संग्रहमां आ प्रति जोवा मळतां तुरत तेनी झेरोक्स नकल करावी लीधेली, ते तेमणे मने आपी छे. तेमनो ऋणस्वीकार करवो ज जोईए के आवी उत्तम कृतिनी एमणे आपणने भाळ मेळवी आपी.
प्रति बे पानांनी छे बन्ने पानांनो एक हिस्सो दरादि कारणे कपाई गयेलो छे, तेथी थोडोक अंश त्रूटे छे. प्रतिनी लखावट शुद्ध प्राय छे पुष्पिका आदि
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