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कवि की अन्य रचनाएँ
हेमरत्न प्रणीत संस्कृत भाषा में अन्य कृतियाँ प्राप्त नहीं हैं, किन्तु राजस्थानी भाषा में इनकी कई कृतियाँ प्राप्त हैं। इसमें से ' गोरा बादिल चरित्र' ऐतिहासिक चौपई ग्रन्थ है । इस चौपई की रचना १६४५ सादड़ी में की गई है और ताराचन्द कावड़िया के अनुरोध से इस रचना का निर्माण हुआ है । ताराचन्द कावड़िया महाराणा प्रताप के अनन्यतम साथी, मेवाड़ के सजग प्रहरी, दानवीर और इतिहास प्रसिद्ध भामाशाह के छोटे भाई थे, तथा उस समय सादड़ी में विशिष्ट अधिकारी थे । कवि स्वयं लिखता है
अनुसन्धान ३९
पूनिमगछि गिरुआ गणधार, देवतिलक सूरीसर सार । न्यानतिलक सूरीसर तास, प्रतपई पाटइ बुद्धिनिवास ॥६१०॥
पदमराज वाचक परधांन, पुहवी परगट बुद्धि निधान । तास सीस सेवक इम भाइ, हेमरतन मनि हरषइ घणइ ॥ ६११॥
संवत सोलइ - सई पणयाल, श्रावण सुदि पंचमि सुविसाल । पुहवी पीठि घणुं परगडी, सबल पुरी सोहइ सादडी ॥६१२||
पृथ्वी परगट 'रांण प्रताप', प्रतपइ दिन-दिन अधिक प्रताप । तस मंत्रीसर बुद्धिनिधान, कावेड्यां कुलि तिलक समांन ॥६१३ ॥
सांमिधरमि धुरि 'भांमुसाह', वयरी-वंस विधुंसण राह । तस लघु भाई ताराचंद, अवनि जाणि अवतरीउ इंद्र ||६१४ ||
ताराचन्द कावड़िया के सम्बन्ध में पुरातत्त्वाचार्य पद्मश्री मुनि जिनविजयजी 'गोरा बादल चरित्र' के 'एक पर्यालोचन' पृष्ठ ५ पर लिखते हैं :
" इस रचना के मुख्य प्रेरक थे मेवाड़ के महाराणा प्रताप के अत्यन्त विश्वस्त राजभक्त, और देशभक्त, राजस्थानीय महाजनों के मुकुटसमान भामाशाह के भाई ताराचन्द ! सादड़ी नगर उस समय मेवाड़ राज्य की दक्षिण पश्चिमी सीमा का केन्द्रस्थान था । ताराचन्द वहाँ पर महाराणा प्रताप के शासन का एक विशिष्ट स्थानक अधिकारी था । कवि हेमरत्न भामाशाह और ताराचन्द के धर्मगुरुओं के शिष्य-समूह में से एक प्रमुख व्यक्ति थे ।"
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