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अप्रिल-२००७
में संग्रामसिंह के पुत्र मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र के अनुरोध पर की गई है, जो कि बीकानेरनरेश रायसिंहजी के मित्र थे । बीकानेर के वरिष्ठ मन्त्री थे । नीतिनिपुण थे और लब्धप्रतिष्ठ थे (पद्य ५, ६, ७) । मन्त्री कर्मचन्द बच्छावत न केवल बीकानेरनरेश के ही मित्र थे अपितु सम्राट अकबर के भी प्रीतिपात्र थे और पोकरण के सूबेदार भी थे।
__स्वयं पूर्णिमागच्छ के होते हुए भी खरतरगच्छ के मन्त्री कर्मचन्द बच्छावत के अनुरोध पर इस काव्य की रचना यह प्रकट करती है कि उस समय में गच्छों का और आचार्यों का अपने गच्छ के प्रति कोई विशेष आग्रह नहीं था । मुक्त हृदय से दूसरे गच्छों के श्रावकों के अनुरोध पर भी साहित्यिक रचना किया करते थे। यह हेमरत्न का उदार दृष्टिकोण था।
इस प्रश्नोत्तर काव्य में १२१ अथवा १२४ पद्य है। कवि ने इस लघु कृति में अनुष्टुप्, उपजाति, वंशस्थ, भुजङ्गप्रयात, शार्दूलविक्रीडित, और स्रग्धरा आदि छन्दों का स्वतन्त्रता से प्रयोग किया है। यह प्रश्नोत्तर काव्य है । जिसमें श्लोक के अन्तर्गत ही प्रश्न और उत्तर प्रदान किए गए है । इसमें प्रश्नोत्तरैकषटिशतक के समान श्लोक के पश्चात् अनेकविध जातियों में संक्षिप्त उत्तर नहीं लिखे हैं | काव्यगत अलङ्कारविधान प्रस्तुत करना इस छोटे से लेख में सम्भव नहीं है ।
इसकी प्राचीनतम दो प्रतियाँ राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में प्राप्त है, जिनका नम्बर इस प्रकार है - २००८७ । एक प्रति कवि द्वारा स्वलिखित है, दूसरी प्रति उसकी प्रतिलिपि ही है। जिसमें दो श्लोक प्रशस्ति के रूप में विशेष रूप से प्राप्त होते हैं । दूसरी प्रति में प्रशस्ति पद्य २ में कवि हेमरत्न को भी आचार्य माना गया है। प्रति का पूर्ण परिचय इस प्रकार है -
प्रति की क्रमाङ्क संख्या २००८७, इस प्रति की साईज २५४१०.९ से.मी. है । पत्र संख्या ४ है । प्रति पृष्ठ पंक्ति १७ और प्रति पंक्ति अक्षर ५२ है । विक्रम संवत् १६३८ की स्वयं लिखित प्रति है ।
___ दूसरी प्रति का क्रमाङ्क प्राप्त नहीं कर सका हूँ ।
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