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डिसेम्बर २०१०
भळतो ज शब्द अही सम्पादके ऊभो कर्यो छे अने शब्दकोशमां अर्थ आप्यो छेठांमेली = ठरेली, घडायेली, पाकी. आम पाठनिर्णयनी अशुद्धिमां मूळ कृतिमांनो कर्ताने अभिप्रेत पाठ 'उठां' रगदोळाई गयो छे.
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'चडचड चारउली चतुरा प्रीसइ' (२/३८) ए पंक्तिखण्डनी आगळ– पाछळनी पंक्तिओमां खारेक, खुरमां, खडी साकर, वरसोलां, फळमेवा, गोळपापडी व. खाद्य वानगीओ पीरसाती होवानी वात छे. एटले 'चारउली' [ = चारोळी ] पाठ संगत गणाय. वळी B अने C प्रत 'चाली' पाठ आपे ज छे (सम्पादके नोंधेलुं पाठान्तर). परन्तु सम्पादके अहीं शब्दभङ्ग करीने 'चार उली' पाठ आप्यो छे अने 'चार ओळ ( आवलि)मां पंगतमां चतुरा पीरसे छे' ओवो अर्थ एमणे कर्यो छे. मारी दृष्टिए आ 'चार उली' पाठ/अर्थनिर्णय ताणी-खेंचीने करायो होय ऐवी छाप ऊभी थाय छे.
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कृष्णनी राणीओ नेमिने लग्न माटे आग्रह करे छे ते सन्दर्भे A अने B प्रतनी एक पंक्ति आम हती
'ठाकुर ! बोल कहु ठरवानु, नेमि ! न कीजई नीठर वानु. ' ( १/६८ )
आमांथी 'ठाकुर ! बोल कहु ठरवानु' एटलो AB प्रतनो पाठ छोडीने सम्पादके C प्रतनो 'ठाकुर ! बोल कहइ वरवानु' पाठ वाचनामां स्वीकार्यो छे. पण मारी दृष्टिए A प्रतनो पाठ छोडवानुं कोई कारण नहोतुं . ऊलटानुं, A प्रतना पाठथी तो आ पंक्तिमां ठरवानुं / नीठरवानुं ओम एकसरखो वर्णानुक्रम भिन्न अर्थसन्दर्भे बेवडातां यमक प्रयोगनी चमत्कृति सधाई होत, ते पाठ छोडवाने कारणे चाली गई छे. वळी A प्रतनो पाठ सन्दर्भमां पण बराबर बेसे ज छे. ( = हे ठाकुर ! ठरवानी - स्थिर थवानी वात कहो. हे नेमि ! निष्ठुर वानां न करो.)
नेमिनाथ मांडवेथी पाछा वळी जतां राजुल पोतानी विरहदशा व्यक्त करतां कहे छे
'की गाइ वली संभारइ मेहनइ मोरा, प्रिय विण प्राण हरइ गाढेरा. ' ( २ / ९४ )