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अनुसन्धान-५७
पं. देवप्रभ विरचित कुमारपाळ रास ___ - मुनि सुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ
चौलुक्यवंशना राजा कुमारपाळनो इतिहास सौने विश्रुत ज छे. कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य पासेथी प्रतिबोध पामी जेमणे जैनधर्मनां व्रतोनो स्वीकार को अने पोताना ताबा हेठळना १८ देशोमां अमारी पडह वगडाव्यो तथा मद्यपानादि साते व्यसनोनुं निवारण करी परमार्हत् एवं बिरुद प्राप्त कर्यु ते राजा कुमारपाळना गुणवैभवथी प्रभावित थई तत्कालीन तेमज उत्तरकालीन घणा विद्वानोए संस्कृतादि भाषाओमां तेमना जीवनचरित्रनी रचना करी. प्रस्तुत कृति पण तेमना जीवनचरित्र उपर प्रकाश पाथरती मध्यकालीन भाषा-कृति छे.
। प्रस्तुत कृतिमां कविए कुमारपाळ महाराजानां धार्मिक कार्योनी सुन्दर पद्योमा वर्णना करी छे. व्यसनोने वश थयेला दशरथ राजा, नल राजा इत्यादिनां दृष्टान्तोथी व्यसनत्याग करवानी प्रेरणा करतां पद्यो खरेखर वखाणवा लायक छे. अणहिल्लवाडना कुमारविहारनुं तथा शत्रुञ्जयादि तीर्थ यात्रासंघ, एतिहासिक वर्णनकरती पङ्क्तिओ कविए अद्भुत रीते काव्यमां वणी काढी छे. काव्यमां अन्ते करायेल 'कुमारपाळनी प्रार्थना, सूर्य-चन्द्रनी जेम काव्यनी अक्षय स्थितिनी अभिलाषा तथा शाश्वतसुखना आशीर्वाद आ बधां पद्यो पण कविनी श्रेष्ठ प्रतिभाने प्रगट करे छे. कर्ता पोते कया गच्छना छे, तेमनी परम्परा शुं छे इत्यादि विषे काव्यमां कशी ज नोंध नथी. परंतु प्रतनी लेखन शैली उपरथी प्रायः १६मी सदीमां प्रतनुं लेखन थयुं हशे एम कल्पी शकाय.
प्रस्तुत प्रतनी Xerox सम्पादन माटे आपवा बदल श्री आत्मानन्द सभा (भावनगर)ना व्यवस्थापकश्रीनो खुब खुब आभार.
पढम जिणंदह नमीअ पाय, अनु वीरह सामीअ, गोअम पमुह जि सूरिराय, मुणि सिद्धिइं गामीअ, समरवि सरसति कवड जक्ख, वर देवि अंबाई, कुमर नरिंदह तणउ रास, पभणउं सुहदाई ॥१॥