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June-2003
संगति एहनई हूती रूडी
पुण नवि प्रीछउ सार विचार |
कर्म निकाचित जेहनइ पोतइ
ते प्रतिबोध न लहइ लगार | २४| तिम गु. ।
दृष्टिरागि नर जे हुइ रातउ
जे हुइ द्वेषी अति घणघोर
मूढ वचन परमारथ न लहइ
विग्रहइ पाड्यउ वेदइ कठोर | २५ | तिम गुरु ।
ए चिहुनि धरम कहिवा बिसइ
ते नवि जाणइ आगम रीति ।
कूकर वदनि कपूर जि घालइ
ते डाहपणूं न धरई चींति । २६ । तिम गुरु. ।
लोहवणिक जिम करइ कदाग्रह
सूत्र न साचूं प्रीछड़ जेह ।
लोक प्रवाहइं मूंड मेलाव
राचइ धर्म न जाणइ तेह | २७ | तिम I
भारीकर्म घणान ए परिं
हलूकर्मी प्रीछइ ततकाल । संनुतकुमार चिलाती नंदन
थावच्चासुत गयसुकुमाल |२८| तिम गुरु व. ।
परिषद पुरुष जोइन कहिवउ । धर्म का इम आचारंगि नंदीसूत्रि ए साखि सकारी । श्रीब्रह्म कहइ जोड्यो मनरंग |२९||
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