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जुलाई-२००७
घृणा न तु मिथ्यादृशामिव बन्धात्मिका तदर्थं तद्धेतो-शुद्धः-अनवद्यः उञ्छो भैक्षं गवेषयितव्यः ।४४
- इससे स्पष्ट होता है कि वैदिकों की तरह खेत में जाकर तथा अरण्य में जाकर धान्य, फल, फूल, पत्ते आदि इकट्ठा करना टीकाकार को मान्य नहीं है । यह सन्दर्भ इस शोधनिबन्ध के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ।
उत्तराध्ययन इस मूलसूत्र के ३५वें 'अणगारमार्गगति' अध्ययन में 'उञ्छ' शब्द का अर्थ अलग-अलग घरों से थोडी-थोड़ी मात्रा में तथा उद्गमादि दोषों से रहित लाई हुई भिक्षा, ऐसा टीका के आधार से भी जान पडता है ।४५
उञ्छ शब्द के सबसे अधिक सन्दर्भ दशवैकालिक सूत्र में दिखाई देते हैं । इसमें उञ्छ शब्द तीन बार 'अन्नाय' के साथ६ और दो बार स्वतन्त्र रूप से आया है ।४७ निशीथचूर्णि में भी 'अन्नायउंछिओ साहू' इस प्रकार का विशेषणात्मक प्रयोग दिखाई देता है ।४८ ओघनिर्यक्ति भाष्य ९६ में 'अण्णाउञ्छं' शब्द का प्रयोग हुआ है ।
'अन्नाय' अर्थात् अज्ञात इस शब्द का स्पष्टीकरण दशवैकालिक टीका तथा दशवैकालिक के दोनों चूर्णिकारों ने विशेष रूप से दिया है ।
अथात् अज्ञात इस शब्द का स्पष्टीकरण हारिभद्रीय टीका में कहा है - 'उञ्छं भावतो ज्ञाताज्ञातमजल्पनशीलो धर्मलाभमात्राभिधायी चरेत् ।'४९
जिनदासगणि ने चूर्णि में कहा है'भावुछ अनायेण, तमन्नायं उञ्छं चरति ।'५० अगस्त्यसिंह की चूर्णि में तीन-चार प्रकार से इसका स्पष्टीकरण
का विशेषणात्मक
४४. प्रश्नव्याकरण टीका १०७ब.. १३ ते १५ ४५. उत्तराध्ययन ३५.१६; उत्तराध्ययन टीका - ३७५ अ.९ ४६. दशवैकालिक - ९.३.४; १०.१९; दश.चूणि २.५ ४७. दशवैकालिक - ०.२३; १०.१७ ४८. निशीथचूणि - २.१५९.२३ ४९. दशवैकालिक टीका - २३१ब.७ ५०. दश.जिनदासगणि चूर्णि - पृ. ३१९
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