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जुलाई-२००७ अर्धमागधी ग्रन्थ :
आचारांग पाया गया एक ही सन्दर्भ विशेष महत्त्वपूर्ण है। सूत्रकृतांग और स्थानांग में अल्पमात्रा में सन्दर्भ दिखाई दिये । प्रश्नव्याकरण की टीका का उञ्छ शब्द का स्पष्टीकरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण लगा । उत्तराध्ययन में 'उञ्छ की एषणा' इस प्रकार का सन्दर्भ पाया । पिण्डेषणा या भिक्षाचर्या दशवैकालिक का महत्त्वपूर्ण विषय होने के कारण उसमें उञ्छ शब्द अनेकबार दिखाई दिया है । ओघनियुक्ति में उञ्छवृत्ति के अतिचारों का सन्दर्भ मिला । जैन महाराष्ट्री ग्रन्थ :
आवश्यकनियुक्ति, ओघनियुक्तिभाष्य, निशीथचूर्णि, वसुदेवहिण्डी, उपदेशपद, जंबुचरिय, कथाकोशप्रकरण, ज्ञानपञ्चमीकथा तथा अन्नायउञ्छकुलकम् इन जैन महाराष्ट्री ग्रन्थों में उञ्छ सम्बन्धी उल्लेख उपलब्ध हुए ।
जैन शौरसेनी तथा अपभ्रंश ग्रन्थों में 'उञ्छ' शब्द की खोज की। दोनों की उपलब्ध शब्दसूचियों में ये शब्द नहीं हैं । इन दोनों भाषाओं में प्राय: दिगम्बर आचार्योंने ही बहुधा अपनी साहित्यिक गतिविधियाँ प्रस्तुत की हैं । हो सकता है कि उञ्छ शब्द से जुडी हुई वैदिक धारणाएँ ध्यान में रखते हुए उन्होंने उञ्छ शब्द का प्रयोग हेतुपुरस्सर टाला होगा। उञ्छ शब्द से जुड़े हुए अप्रासुक, सचित् वनस्पतियों के (धान्य के) सन्दर्भ ध्यान में रखते हुए आचारकठोरता का पालन करनेवाले दिगम्बर आचार्यों ने भिक्षावाचक अन्य शब्दों का प्रयोग किया लेकिन उञ्छवृत्ति का निर्देश नहीं किया । वैदिक साहित्य :
वैदिक साहित्य में लगभग १०० ग्रन्थों में उञ्छ तथा उञ्छ के समास पाये गये । तथापि प्राचीनता तथा अर्थपूर्णता ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित ग्रन्थों में से सामग्री का चयन किया । चयन करते हुए यह बात भी ध्यान में आयी कि ऋग्वेद आदि चार वेद, ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद इन ग्रन्थों में उञ्छ शब्द का कोई भी प्रयोग दिखाई नहीं दिया । उञ्छ तथा उञ्छ के समास महाभारत के सभापर्व, आश्वमेधिकपर्व तथा शान्तिपर्व आदि पर्वो में विपुल मात्रा में उपलब्ध हुए । कौटिलीय अर्थशास्त्र में दो अलग अलग
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