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जुलाई-२००७
साधु की भिक्षा का वाचक है । * उञ्छवृत्ति व्रतस्वरूप है । माँगकर लाई जानेवाली भिक्षा नहीं है। जैन साधु खुद गृहस्थ के घर जाकर भिक्षा (उञ्छ) माँगकर लाते हैं ।
उञ्छ व्रत साधु और गृहस्थ दोनों के लिए है । भिक्षा व्रत सिर्फ साधुओं के लिए है । वैदिक परम्परा में उञ्छवृत्ति व्रतस्वरूप है । जैन परम्परा में यह साधु का नित्य आचार है । * उञ्छ में धान्य कण, भुट्टे तथा वृक्षों से कन्दमूल, फल, फूल, पत्ते आदि
का ग्रहण होता है । भिक्षा में गृहस्थ के द्वारा गृहस्थ के लिए बनाई हई रसोई से साधु प्रायोग्य आहार का विधिपूर्वक ग्रहण होता है । जैन सन्दर्भ में 'उञ्छ' शब्द का प्रयोग आहार के अलावा छादन, लयन, संस्तारक,
द्वारपिधान आदि के बारे में भी प्रयुक्त किया गया है । * उञ्छवृत्ति में अग्निप्रयोग न की हुई खाने की चीजें लाई जाती हैं ।
उञ्छवृत्ति का धारक कभी भी पकाया हुआ आहार नहीं ला सकता । उञ्छवृत्ति से लाए गये सभी पदार्थ जैन दृष्टि से सचित्त है और जैन साधु को कभी भी कल्पनीय नहीं हैं। भिक्षा में अग्निप्रयोग के बिना,
किसी भी वस्तु को सचित्त और अप्रासुक माना है । * उञ्छवृत्ति से लाया गया धान्य आदि पीसना, पकाना आदि क्रिया खुद
उञ्छवृत्ति धारक करता है । भिक्षावृत्ति से लाये हुए आहार पर जैन साधु किसी भी तरह का संस्कार नहीं करता है । * उञ्छवृत्ति से लाये गये धान्य आदि का संग्रह किया जा सकता है ।
भिक्षा का संग्रह नहीं किया जाता । संगृहीत उञ्छ का 'सत्पात्र व्यक्ति को दान देना', पुण्यशील कृत्य माना गया है। साधु के द्वारा लाई गई भिक्षा का अन्य साधुओं के साथ अगर
संविभाग भी किया तो उसको दान संज्ञा प्राप्त नहीं होती । * उञ्छवृत्ति से भिक्षा लाने के पहले किसी भी मालिक की अनुमति नहीं
ली जाती । इसके विपरीत मालिक की अनुमति के बिना जैन साधु सुई भी अपने मन से उठा नहीं सकता । अगर कोई भी चीज अनुमति
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