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अनुसन्धान-५८
शासनसम्राट्-श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी-विरचिता अनेकान्ततत्त्वमीमांसा
सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
परमगुरु तपगच्छाधिपति श्रीविजयनेमिसूरिजी म. (वि.सं. १९२९२००५) जैनशासनना धोरीपुरुष हता. तेओश्रीओ शासनप्रभावनानां अनूठां कार्योनी साथे साथे श्रुतोपासनानां पण रूडां कार्यो कर्यां हतां. तेओश्री अद्भुत मेधा अने कठोर परिश्रमने लीधे स्वयं अनेक विद्याशाखाओना पारगामी बन्या हता अने शिष्योने पण संगीन अभ्यास करावी विद्वन्मूर्धन्य बनाव्या हता. परमगुरु अने तेओना शिष्यपरिवार पासेथी जैनसंघने घणा घणा प्राचीन-ग्रन्थोना संशोधनसम्पादन-विवेचन व. सांपड्यां. श्रीहरिभद्रसूरिजी, उपा. श्रीयशोविजयजी जेवा महापुरुषोना ग्रन्थोना अध्ययननी परिपाटी श्रमणसंघमां पुनः प्रस्थापित करवानो यश, जो वास्तविक रीते कोईने घटतो होय तो ते आ परिवारने ज छे..
परमगुरु तथा तेओना शिष्यवृन्द द्वारा नूतन ग्रन्थोनुं सर्जन पण विपुल प्रमाणमां थयु. स्वयं परमगुरुओ ज सप्तभङ्गीप्रभा, न्यायसिन्धु, न्यायालोकटीका, न्यायखण्डखाद्यटीका जेवा उत्तमोत्तम ग्रन्थोनी रचना करी छे. जैनन्याय अने जैनप्रमाणचर्चा साथे सम्बन्धित प्रस्तुत कृति पण तेओश्रीनी ज रचना छे. ___ अनेकान्ततत्त्वमीमांसा ओ नाम सूचवे छे तेम, आ ग्रन्थमा स्याद्वादनी चर्चा तो छ ज; पण अनी साथे ने साथे आ स्याद्वादतत्त्वने समजवानां साधनोप्रमाण, नय अने निक्षेपनी पण विशद छणावट छे. षड्द्रव्यनी विचारणा पण विस्तारथी करवामां आवी छे. वस्तुतः आ समग्र कृतिमां स्याद्वादनुं स्वतन्त्र निरूपण छ ज नहीं, पण स्थाने स्थाने तेनुं निरूपण सांकळी लेवायुं छे अने ओ ज आनी खूबी छे. सूत्रात्मकशैलीनो आ ग्रन्थ ४ अध्याय, १६ पाद अने ३४७ सूत्रोमां वहेंचायेलो छे, जेनी तालिका भूमिकाने अन्ते मूकी छे.
खूब ओछा शब्दोमां वस्तुछणावट अने पूर्वसूत्रोनां पदोनी उत्तरसूत्रोमां अनुवृत्ति ओ बे सूत्रात्मक ग्रन्थनी विशेषता होय छे. अने तेमां पण प्रस्तुत कृतिमां तो ओना कर्ताना प्रगाध पाण्डित्यनी छाप गहन रीते पडी छे. अटले