________________ 6 मार्च 2008 सुमति गुपति रमणी रमई वली जे दमई रे इंद्री / मुनिताज काज सरई दरिसन थकां गुर आपई रे शिवपुर नऊ राज // च. 3 // दन्ति पन्ति हीरे जड़ी सोवन घडी रे विचइ रुड़ी रेख / पेखि सखि मनि उलसई कमलाकर रे जिम सूरज देखी // च. 4 // सोभागी मुझ मलउ सखि तउ टलउ रे भवसागर फेर / सिद्धिविजय कहई तां तपउ गुरु माहरु रे जिहां महियल मेर // च. 5 / / मुनिचंदउ रे विजयदेवसुरीन्द / / इति श्री विजयदेवसूरीश्वर भास समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org