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जाणमि विनिविनिय ( ? ) नयण, पाहाणि मउलउं पाव- मण । पुत्त न हिउ परणियउ, वर- वत्थाहरण - विभूसियउ । पुत्त न भुत्ता पई विसय, पंचिंदिय- मणहर - वर - सुहय । पुत्त न भुत्तउं रज्जु पई, जीवंतिय कीसी काई मई । पुत्त न पेल्लिउ सत्तु - बलु, न-वि अज्ज - वि पर्याडिउ बाहु-बलु । करि-कुंभत्थलि न-वि रमिउ, न-वि अज्ज - वि
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ति (४०.२) हुयणि जसु भमिउ ! पुत्त न परिणिय राइमइ, जा उग्गसेण-धुय रूववइ । भावहिं पणिउ कुमरेण, भव-भवण-महा-दुह - भीएण | दुत्तरु माइ ए भव - जलहि, परियंतु न लब्भइ को- वि तहिं । सो जि तरेवड दारुणड, जर मरण-रोग- सोगाउलउ । संजम - बोहित्थेहिं चडेवि, तव पवणे सुपेल्लिय तुरिय- गइ । संसारिउ सुहुं अन्न - जम्मि, न-वि हुंति सहेज्जा नरगम्मि | अम्मे खमेव सव्वु पई, जं किंचि किलेसाविया य मई । इवँ भणेविणु निग्गयउ संभासिउ जायवि बप्पु तउ । निव्वर - निडुर- वयणेहिं जं किलिसिउ बहुविह-वासरेहिं । ताय खमेव दय करवि, हउं लेमि दिक्ख उज्जिलि चडवि । काई पुत्त वइरागियउ किन कहिवि होइ ( ? ) अवगन्नियउ | केण पुत्त वेयारियउ, जं उज्जिलि रहवरु वालियउ । भुंजि रज्जु माणेहि सुय, पावज्जहि अम्हहं एह किय । रज्जई विज्जु - सरिच्छाई, न वि जंति भवंतरे सरिसाई । बप्पु नमेविणु निग्गयउ, संभासिउ परियणु अप्पणउ ।
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( ४१.४) चिंता - सायरे सो पडिउ, अम्ह अज्जु पर रवि अत्थमिउ । संभासेविणु नयरि- जणु, पुणु दस - वि दसार महुमहणु ।
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७९. किरि कुंभ. ८०. पणिय ८९. उजिल्लि ९४. नमेविण नियंवर अप्पणउं २०. पडिओ... अज्जु प अत्थमिओं । ९६. दस वि दसाय
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