________________ June-2006 ___ आचार्य प्रवर स्वर्गीय श्री विजयकलापूर्णसूरिजी महाराज ने आनन्दघनजी के मेड़ता स्थित उपाश्रय का जीर्णोद्धार करवाकर दर्शनीय गुरु मन्दिर बनवा कर भक्तों के लिए अनुपम कार्य किया है / Co. प्राकृत भारती 13-A. मेन गुरुनानकपथ मालवीय नगर जयपुर-३०२०१७ लेता हता. पोते दीक्षा तथा वयमां वडील अने आनन्दघन घणा नाना, . छतां तेमने पाटला पर बेसाडी पोते विनयपूर्वक सामे बेसीने वाचना लेता हता." अलबत्त, आ वात दन्तकथा छे के हकीकत, तेनो निर्णय करवानुं कोई साधन नथी ज. परन्तु नेमिसूरिमहाराज पासे परम्परागत आ वात आवी होई ते साव निराधार होय तेम पण मानवू ठीक नथी. धर्मसागरजीने भगवतीसूत्र न आवडतुं होय ते तो शक्य ज नथी; पण आनन्दघनजी पासे कोई विलक्षण रहस्यबोध हशे, अने ते कारणे ज आवा वृद्ध पुरुष पण तेमनो लाभ लेवा प्रेराया हशे एम बनवाजोग छे. अस्तु. -शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org