________________ [99] ए कर्मविपाक सांभलीने संसारभीरुने / करे घणा पुण्यकार्य जिम कर्मनो क्षय थाइ / / 62 अत एवात्महितधी-र्मा प्रमादीर्मनागपि / पुण्यक्रियासु सर्वासु सर्वशक्त्या कुरूद्यमाम् (मम्) // 63 ते भणी आत्महीतार्थी लगारे प्रमा(द) ने करवं / पुन्यनी क्रिया सर्वने विषे आपणी शक्ते उद्यम करवू // 63 // इति श्रीलघुकर्मविपाकश्लोकाः / संवत् 1696 वर्षे मार्ग्रसरशुदि 13 रवौ लिखितं ऋषि- // --x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org