________________
सिद्धसेन दिवाकरना चरितमां मळतुं एक अपभ्रंश पय सिद्धसेन दिवाकरना प्रबंधगत चरितमां एक एवो प्रसंग छे के सिद्धसेनसूरि राजमान्य बन्या तेथी साधु-आचारनी विरुद्ध राजसत्कार भोगवता थया अने गच्छमां आचारनी शिथिलता प्रवर्ती. सिद्धसेनसरिने जाग्रत करवा वृद्धवादी गुप्तवेशे तेनी पासे आव्या अने एक पद्यनो अर्थ पोताने समजातो नथी तो करी बताववा कह्यु. पद्य 'प्राकृत' भाषामा हतुं. सिद्धसेनसूरिनी समजमां कशुं न आयु. आगंतुके ते पद्य नो मर्म बताव्यो. तात्पर्य एबुं हतुं के तुं यमनियम अने व्रतोनो अतिचार न कर, साधुव्रतनुं दृढताथी पालन कर. सिद्धसेनसूरि कळी गया के आगंतुक बीजा कोई नहीं, गुरु वृद्धवादी ज छे. ('प्रभावकचरित', पृ. ५७-५८; 'प्रबंधकोश', पृ. १७-१८).
ए बंने स्थाने जे पद्य आपेलुं छे, ते अपभ्रंश भाषानुं पद्य छे, अने जे रूपे पाठ मळे छ तेमां भाषा तेम ज छंदनी दृष्टिए केटलीक अशुद्धि छे. छंद आंतरसमा चतुष्पदी छे. एकी चरणोमा १४ मात्रा अने बेकी चरणोमां १२ मात्रा. पद्यनो शुद्ध पाठ नीचे प्रमाणे होवानो संभव छ :
अणफुल्लिय फुल्ल म तोडहि, मण आरामा मोडहि ।
मण-कुसुमेहिं अच्चि निरंजणु, हिंडहि कांइ वणेण वणु }} 'अणविकस्या पुष्पवाळी (लता)ना पुष्प न चूंट; पुष्पवाटिकाओ उजाड नहीं; मानसिक पुष्पथी निरंजननी पूजा कर; एक वनमांथी बीजा वनमां कां तुं भटकी रह्यो छे ?' अहीं बीजा चरणमा आवतो मण निषेधार्थ मा नी साथे भारवाचक ण जोडाईने बन्यो छे. हिंदीमां कहो न । करो न जेवा प्रयोगोमां जे म छे ते : गुजरातीमां ते ने रूपे छ : 'करोने', 'बोलोने'.
जो आ अर्थने मुख्य गणीए तो तात्पर्य एवं समजाय के पुष्पादिथी थती बाह्य पूजा करतां मानसिक पूजा ए ज साची पूजा छे. परंतु राजशेखरसूरिना वृत्तांतमां संदर्भ अनुसार उपर सूचित करेल व्यंग्यार्थ आयो छे, ज्यारे प्रभाचंद्रसूरिए तो विदग्धताथी त्रण अर्थ करी बताव्या छ, अने कह्यु छे के आ प्रमाणे वृद्धवादीए पद्य ना अनेक अर्थ करी बताव्या.
आ कारणे, अन्य संदर्भमां प्राप्त पधने प्रस्तुत संदर्भमा योज्यु होवानी आपणने शंका जाय छे. चरितने बहेलाववा प्रचलित सुभाषितो वगेरेने जोडी देवानी प्रणाली चरितकारोमां सामान्य हती.
धर्ममहिमानुं एक सुभाषित सिद्धसेनसूरिना चरित्रनी जे उत्तरकालीन प्रबंधसाहित्य सुधीनी परंपरा मळे छे, तेमां आप्रदेवसूरिकृत 'आख्यानक-मणि-कोश-वृत्ति' मा (ई.स. ११३३) आपेल 'सिद्धसेनाख्यानक' मां, सिद्धसेन अने वृद्धवादी बच्चे गोवाळोनी समक्ष थयेला वादमां वृद्धवादी पोतार्नु वक्तव्य छंमा
[43]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org