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________________ कोई बाधक प्रमाण नथी. आ बसवाट एक नाना गाम के नगरनी रचना छे. कालक्रमनी नजरे आ अवशेषों पैकी केटलाक इ.स. दसमी/अगियारमी सदी पहलाना छे. तेथी तारंगा पर वसवाटनी प्रक्रिया अजितनाथ देरासर करता केटली सदीओ पहेलानी छे. मार्गा ___ अहीं पूर्व-पश्चिमना मुख्य मार्गने तळेटीनां बंधायेलां मकानो, तळाव पर आववाना रस्ता आदि साथे सांकळी लेवामां आव्यो हतो, तेथी साथे दुर्गुनी अंदर फरवाना मार्गो पण होवानां प्रमाणो छे. ते पैकी केटलाक स्थळे चढवा उतरवा माटे व्यवस्थित पगथिया बांधकामां आव्या होय एम लागे छे. आ पगथीयानी तैयार थयेली सोपानपंक्तिओ मकान तरफ जती होवानो प्रमाण छे. आम आ मार्गो, मकानोनी घरवखरी आदि तारंगा पर आशरे हजार वर्ष करता पूर्व मानव वसबाट होवानुं सूचन करे छे.. शिल्पो अत्रे दुर्ग अने नगरना अवशेषोमां केटलांक शिल्पो महत्वनां छे. ते पैकी अजितनाथना दहेरासरना हाल वपराता दरवाजानी अंदरना 'गणेश' अने 'विष्णु'ना पारेवाना पथ्थरना शिल्पो शैली द्रष्टिए नवमी-दशमी सदीनां छे. तेवी रीते अजितनाथना देहेरासरना मुख्य प्रवेशमंडपनी जमणाहाथनी देवकुलिकानी अंदर स्थापन करेली 'पदमावतीदेवी'नी लगभग आ समयनी अत्यंत मनोहर प्रतिमा छे. तेनी साथे दहेरासरनी कोटनी उत्तरनी भीतना गोखमा रहेली 'गोमुख यक्ष'नी आरसनी प्रतिमा पण बारमी सदीना पूर्वाधनी शैलीने अनुसरे खे. तदुपरांत सोमनाथना महादेवना मंदिरना प्रवेशद्वारनी बन्ने बाजुए खारा पथ्थरनी 'ईशान' अने 'वायु दिग्पालनी प्रतिमाओ पण बारमी सदीथी प्राचीन छे. आ उपरांत दुर्गनी भीतोमा जडायेलां शिल्पो, पूर्वना दरवाजा पासेनी चौहाणोनी कुलदेवी 'आशापुरी'नी महिषमर्दिनीनी प्रतिमा अने तेमाथी थोडे दूर घसायेली, उभेली प्रतिमा आदि अहीनां प्राचीन देवस्थानोना अजितनाथ दहेरासर पूर्वना काळना अवशेषो होवानुं सूचवे छे. आम अहींथी प्राप्त थता मकानना अवशेषो, मार्गना अवशेषो, नळिया अने वामणोघरवखरीना अवशेषो, शिल्पोना अवशेषो वगेरे परथी तारंगाना स्थाने हजार - बारमो वर्ष पूर्वे कोई नानु गाम के नगरी होवानुं सूचन करे छे. आ समग्र परिस्थितिनुं अवलोकन करतां हालनां अजितनाथनां दहेरासरचं स्थान तारंगानी प्राचीननगरीनां केन्द्र स्थाने मुख्य मार्गनी दक्षिणे होवानुं स्पष्ट थाय छे. तेथी ए दहेरासर ते तारंगानी प्राचीननगरीचं महत्त्व- देवस्थान के चैत्य होवु जोइए. आ दर्शाव छे ते प्राचीनगरीमा जैनोनी अने तेमनी प्रवृत्ति सविशेष प्रमाणमा होवी जोईए. आ दहेरासर मात्र पर्वतस्थित तीर्थस्थान ज नहीं पण प्राचीन तारंगानगरीएक महत्त्व- देवस्थान हतुं. जे अंगे हजी पण अन्वपणने अवकाश छे. [42] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229453
Book TitleJain Tirthsthan Taranga Ek Prachin Nagri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal Mehta, Kanubhai V Sheth
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size292 KB
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