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अनुसन्धान-५७
एक अनुकरणात्मक स्तुति-रचना
- मुनि सुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ
"भज गोविन्दं भज गोविन्दं" आ जगप्रसिद्ध कृति आद्य शङ्कराचार्यनी रचना छे. संसारनी असारतानुं वर्णन करती प्रत्येक पङ्क्तिओ खरेखर आत्मतत्त्वने उजागर करे छे. प्रस्तुत कृति शङ्कराचार्यजीना स्तोत्र जेवी ज (जैन श्रमणनी के गृहस्थनी) रचना छे. श्लोकनी सङ्ख्या अने रागर्नु बन्धारण ए बन्नेनुं पण बन्ने काव्यमां साम्य जणाय छे. शङ्कराचार्यजीनी कृति पासे नथी तेथी मूळ श्लोकोनु साम्यपणुं छे के नहि अथवा छे तो केटला अंशे छे ते मेळवी शकायुं नथी. प्रस्तुत कृति कृतिकारनी शरूआतनी रचना होई शके. क्यांक क्यांक छन्दभङ्ग थयो होय तेम जणाय छे. एकन्दरे अन्यदर्शननी कृतिनुं अनुकरण ए मूळकृतिनी लोकप्रियतानो उत्तम नमूनो छे.
कृतिकार कोण छे ? तेनो काव्यमां स्पष्टपणे कशो ज उल्लेख नथी. परंतु छेल्ला श्लोकनो 'गुणचन्द्र'शब्द ए कवितुं नाम होई शके खरं. प्रस्तुत कृतिनी Xerox प्रत सम्पादनार्थे आपवा बदल श्री सुरेन्द्रनगर जैन संघ ज्ञान भण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो खुब खुब आभार.
अहँ नमः ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ भज सर्वशं भज सर्वज्ञ, भज सर्वशं मूढमते, शिवपदसौख्यं यदि तव भोक्तुं, वाञ्छा कर्म विमोक्तुं रे, भज सर्वशं... ॥१॥ अशरणशरणं भवभयहरणं, शिवसुखकरणं तरणं रे, जन्मजरामरणादिनिवारं, भव्यजनौघाधारं रे, भज सर्वज्ञ... ॥२॥ सकलसुरासुरसेवितचरणं, कर्मविनाशनकरणं रे, जन्तूद्धरणे प्रवहणतुल्यं, दूरीकृतबहुशल्यं रे, भज सर्वशं... ॥३॥ न हि ते माता न हि ते भ्राता, न हि ते सौख्यविधाता रे, न हि ते जनको न हि ते भार्या, न हि ते वर्या चर्या रे, भज सर्वज्ञ... ॥४॥