________________
जान्युआरी-2007
परमात्माने भावभरी प्रार्थनाओ करवामां आवी छे. छेल्ली बे कडीमां कृतिनी रचनासंवत, तिथि तेमज कर्तानी गुरुपरम्परानो उल्लेख थयो छे. कृतिसम्पादन :
'जैनगूर्जरकविओ'ना बीजा भागमा ४५४मा कवि तरीके श्रीकमलसागरजी म.ना नामनो उल्लेख छे. तेमज ९३३मी कृति तरीके ३४ अतिशयस्तवननो उल्लेख थयेल छे.
जो के जै.गू.क.ना संग्राहक मोहनभाई देसाईने आ कृति अधूरी मळी होय तेम जणाय छे. कारण के ओना आदिभागमा प्रथम बे ढाळ छुटी गई छे. कृतिनो प्रारम्भ सीधो त्रीजी ढाळथी थाय छे, ज्यारे कृतिना अन्तभागमां पण महत्त्वनो फरक जोवा मळ्यो. अमने प्राप्त थयेल हस्तप्रतमां कृतिनी रचना संवत 'इन्दुषड्-रस-लेशा' द्वारा १६६२ बतावी छे. ज्यारे जै.गू.क.ना द्वितीयभागमा 'इंदु रस बिंदु लेसा' द्वारा १६०६ बतावी छे. आम ६० वरसनो फरक पडे छे. कर्ता श्री दानसूरिमहाराजना प्रशिष्य होइ १६६६ने बदले १६०६ वधु योग्य ठरे छे. वधु साधनना अभावे आ चर्चाने आगळ लंबावता
नथी.
आ कृतिनी प्रतिकृति करी आपवामां पं. अमृतभाई पटेलनो सहयोग सांपड्यो छे.
चोत्रीशअतिशयवर्णनगर्भित श्रीसीमंधरजिनस्तवन ॥६॥ ॐ परमगुरुश्रीहर्षसागरउपाध्यायगुरुभ्यो नमः ॥
(ढाल - १) सदानंदि वंदु जुगादीस देव, जेहनी अहिनिसि सुरनर करइ सेव । परमगुरु पासि मइ निर्मल बुद्धि मागी, हिवई हुं थुगुं श्रीमंधिर पाय लागी ॥१॥ प्रभो मई सुण्या तुम्हे पूरव माहाविदेह, तिहां अछइ पुष्कलावती विजय नाम जेह ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org