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अनुसन्धान-३८
प्रभो नयरी पुंडरगिणी अतिरसाल, तिहां उपना श्रीमंधिर गुण विशाल ॥२॥ प्रभो पंचसई धनुष तनु सोवर्ण वान, प्रभो पाए लंछन वृषभ सोहइ प्रधान । प्रभो तुम्ह पूरव लख्य चउरासी आय, प्रभो धिन्न ते राजकुलि उपना जिनराय ॥३॥ प्रभो अनुकमि भोगव्यां विषयसुख राजभोग, प्रभो मनि करी जाणीउ अथिर ए संयोग । प्रभो मुनिसुव्रत वारइ हुआ चारित्रचारी, तव तुम्हे कर्मरिपु भावठि दूरि वारी ॥४॥ प्रभो मई जाणीइं तुम्हे छंडीउ सयल संग, पणि हजी ताहरइ मनि संयम रमणि रंग । प्रभो तेणइ बहुत तुम्ह पासि ठकुराई दीसइ, प्रभो एणइ कारणि चउतीस अतिशय कहीसि ॥५॥
(४ सहज अतिशय) प्रभो ताहरु रूप मुझ मनि अति सुहाइ, इस्यु को नहीं समवडि जि अनुपम दिवाइ । प्रभो जन्म लगइ अतिशय अछइ तुम्ह च्यार, प्रभो मंसनइ रुधिर होइय स्युं दुग्धवार ॥६॥ बीजइ निर्मलु देह तुम्ह स्वेद नहीं रोगबंध, त्रीजइ सास निस्वास कमल उत्पल सुगंध । चुथइ आहार नीहार नवि छदमस्थ देखइ, प्रभो ताहरा गुण मूरख कवण लेखइ ॥७॥ प्रभो केवलतणा हिवइ कहुं अतिशय इग्यार, प्रभो धिन्न ते देश जिहां जिन करइ विहार । प्रभो ताहरी चातुरी मई हिवइं जाणी, शिवरमणि वरवा काजि ए ऋद्धि आणी ॥८॥
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