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[87] गतरेफो फलचिन्तन डोडा पान लवंग । वरतरजायफलोन्नतजाव त्रिभुवनरंग ॥ ९
(कलश) इत्थं श्री त्रिशलासुतः स्तुतिपथं दीपालिकावासरे नीतः स्फारसुखासिकावलिकलैभॊज्यैरशेषैः सुखम् । देयाद्वाचकधर्मसागरगुरोः पट्टाम्बरद्योतने सूर्यश्रीगुरुलब्धिसागरशिशोर्नेमेमनोवाञ्छितम् ॥ १०
५. पुण्यहर्षकृत हीर-गीत
(राग सारंग चरचरी) हीर हीर हीर रंगीलो हीर हीर हीर छबीलो होर हीर हीर इति मंत्र जपो लोक रे । धरी यु ध्यान एकमनां ले जपमालि के मनां पाउ ज्युं मन काम मंत तंत ता इत फोक रे ॥ १ ॥ हीर० देवदानवकिन्नरा भूतप्रेतव्यंतरा होत तास किंकरा अउर सकल लोग ॥ २ ॥ हीर० कहत पुण्यहर्ष एहि परमवशीकरण एहि मनमोहन एहि एहि दूजो नहि तिलोकी रे ॥ ३ ॥ हीर०
६. पुण्यहर्षकृत-विजयसेन-सूरि-गीत
__ (राग सारंग मध्ये चरचरी) ओश वंश गगनि चंद कोडनंद वदनचंद । देख भई आनंद रे ॥ १ ।। ओश. आं. खंजन गंजन लोअनां चतर लोक मोहनां । लाल अधर सोहनां दंतकंतिकुंद रे ॥ २ ॥ ओश. विजयसेनसूरिराय सुरनरकिन्नर कीरति गाय । दर्शनि पातक दूरि जाइ वचन अमृतकंद रे || ३ | मोश. कहत पुण्यहर्ष एक सुनो हृदय धरी विवेक । चरनकमल तुम्हहि छेक नमत भविक वृंद रे ॥ ४ ॥ ओश.
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