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१. का
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श्रीमत्पण्डितराजसागर सुधीः शिष्यो महानन्दनं श्रीपार्श्व रविसागरस्त्व मगसीचूडामणी नौत्यलम् ॥ ७
३. रविसागर - कृत - आदिनाथ - स्तवन (सुखभक्षिका-नाम- गर्भित ) (राग केदार फाग)
श्रीसंघे वर साकर जय नृपमोदक सेव विमलजले बीजे सदमरकीर्तित जिनदेव । हिंगुल खण्ड विभारुण ममलाप सीमदान भविकं सार चकार तयिन पदकमलममान ॥ १ वरसोलाघबदाम य चारो ली निमजाभ [जन ] पस्तांतिम खारिक भीत इभाव सुलाभ || सुदमी दुष्क निशाकर कोहलापाकरपाहि वितशोकाकबली वृष खंडर परमयशाहि ॥ २ अखहलां कक कूलिर खरमांगतनिद्राख आटोपरां सदा फल करणी पंयाशाख । सार विचार बिदाडिम रतबत नालीकेर अकरमदां बकपूरक महसां तनु असुबेर || ३ केलांगुलि नारिंगक जम्बीरांचिततान मतिरां जायफला लिंब 'कमरख नेमूस्त्वान | अकलिंबुधवर जांबुधिजरगोजांकिरबोर कयरीति कृत परायण पीलु गतेरकठोर ॥ ४ वालुरणीनविडांगर डोडाध्यान लविंग कर्मक्षपणेगांतवनाददवत्तरसंग |
वीतजराब मरी तेल भाजी कल मधमाल क्षीर दही नृपानत सोपारी रससार ॥ ५
( कलश )
श्रीतपगणाधिपहीरविजयगुरु गच्छभूषितबुधवर
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