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स्तुत्यात्मक सात लघु कृतिओ
सं. मुनि श्री धुरंधरविजयजी
प्रास्ताविक
अहीं रजू थती ७ लघु कृतिओ मुनि धुरंधरविजयजीए पोताना प्रतिसंग्रहमांथी शोधी सुवाच्य रीते संपादित करी प्रकाशनार्थे अमने पाठवी छे. ए कृतिओनो अल्प परिचय आ प्रमाणे :
१. मंगलपुर - मांगलोर (अत्यारनुं मांगरोळ) स्थित नवपल्लव पार्श्वनाथनी स्तुतिनो १ जोडो छे, जे ४ ज पद्योनो होवा छतां तेना छंदोवैविध्यने कारणे ध्यानाह छे. कर्ता अज्ञात छे.
२. श्रीरविसागर - कृत कुटुम्ब नाम गर्भित मगसी (मक्षी) पार्श्वनाथस्तवन छे, जे गेय गीतस्वरूप छे. कर्ता कलशमां जणावे छे तेम, संसारना कौटुंबिक संबंधो व्यर्थ छे ते समजाववा माटे, अहीं, कुटुंबीवाचक - वास्तवमां- न बनता होवा छतां कुटुंबीवाचक होवानो आभास ऊभो करे ते रीते कुटुंबवाचक शब्दो गूंथी बताव्या छे, जे रसदायक बने तेम छे.
३. आ रचना रविसागरकृत सुखभक्षिका ( भोज्यपदार्थ) नामगर्भित श्री आदिनाथस्तवनरूप गेय रचना छे. आ प्रकारनी रचनाओ पूर्वे प्रकाशित थयेली छे ज, जे आवां काव्योना रसिको माटे जाणीती छे.
४. चोथी रचना पण त्रीजीनी जेम ज सुखासिका गर्भित वीरजिन - स्तोत्र छे; मात्र तेना रचनार उपाध्याय नेमिसागरगणि छे.
1.
आ गुजराती पद छे, जेमा कर्ता मुनि पुण्यहर्षे हीरविजयसूरिजीनी स्तुति गाई छे.
६. आ रचना पण गुजराती पद छे, ए पुण्यहर्षे विजयसेनसूरिनी स्तुतिरूपे बनाव्युं छे.
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७. सातमी रचना पुनः कुटुंबी संबंध नामगर्भित गेय संस्कृत रचना छे, जे पं. भक्तिसागरे बनावेली छे.
साते रचनानो समय सत्तरमो शतक छे, अने एक ज पानामां संग्रहायेली छे, तेमज अप्रकट छे.
-शी.
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