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December - 2003
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५, ८, ९, १८, २३, २५, २६ सुन्दरी (हरिणप्लुता) ७, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, २०, २४, मालिनी, १९, २१, वसन्ततिलका-इन्द्रवज्रा ४ (यहाँ कवि ने प्रथम चरण वसन्ततिलका का दिया है, और शेष तीनों चरण इन्द्रवज्रा में दिये है।)
रचनाप्रशस्ति - आर्याछन्द १, २, ४, ५ अनुष्टुप् ३, ६ हस्त लिखित प्रति :
श्री लालभाई दलपतभाई, भारतीय संस्कृत विद्या मन्दिर, अहमदाबाद मुनिश्री पुण्यविजयजी के संग्रह में ग्रन्थांक २८८८ पर सुरक्षित है । प्रति टिप्पणसहित शुद्धतम है । लेखनकाल नहीं दिया है, किन्तु लिपि और कागज को देखते हुए १७वीं शताब्दी में रचना-काल के आस-पास ही लिखी गई है। टिप्पणियाँ - १. मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित होकर 'जैन साहित्य संशोधक
समिति' अहमदाबाद द्वारा सन् १९२८ में प्रकाशित २. मेरे द्वारा सम्पादित होकर विस्तृत भूमिका के साथ सुमती सदन कोटा
से सन् १९५३ में प्रकाशित ३. महावीर स्तोत्र संग्रह पुस्तक में जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार सूरत से
प्रकाशित मेरे द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान राज्य विद्या प्रतिष्ठान सन् १९५३ प्रकाशित मेरे द्वारा सम्पादित होकर लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्या संस्कृति
मन्दिर, अहमदाबाद से सन् १९७४ में प्रकाशित ९. लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्या संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद
से सन् १९७४ में प्रकाशित १०. अमीसोम जैन ग्रन्थमाला, बम्बई द्वारा सन् १९४० में प्रकाशित ५, ६, ७, ११, १२, १३, १४, १५, १६. प्रेस कॉपी मेरे संग्रह में ।
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