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केवलिशरीरथी कोइनिं भय न ऊपजइ एहवू कल्पि तो 'मंता मतिमं अभयं विदित्ता' इत्यादिक सूत्रनी मेलि यतीमात्रना शरीरथी जीवनिं भय उपजवो न घटइ ॥ ८६ ॥
श्रीवर्धमाननि देखीनि हाली नाठो तिहां कोइ इम कल्पना करइ छड् जे "तिहां हालीना योग कारण, पाणि भगवंतना योग कारण नहि'' ते अति खोटुं, जे मार्टि 'भगवंतं दळूण धमधमेइ' एह व्यवहारचूणि कहिइं छइ तेहनि अनुसारि भगवंतना योग ज तिहां कारण जाणइ छइ तथा अन्यकर्तृक भय तेरमिं गुणठाणिं होइ तो चउदमा गुणठाणानी परि अन्यकर्तृक हिंसा पणि हुई जाईइ ते तो स्वमत विरुद्ध १८७||
'सव्वजियाणमहिंसं' इत्यादिक सूत्रनी मेलिं जे केवलीनि अवश्यभाविनी हिंसा ऊथापइ छइ तेहनि मतिं हिंसाइदोससुन्ना इत्यादिक सूत्रनी मेलिं सामान्य साधुनिं पणि ते ऊथापी जोईइ ।।८८॥
"जलचारणादिक लब्धिमंत यतीनिं जलादिकमां चालतां जलादिक जीवनो घात ज न होइ तो सर्वलब्धिसंपन्न केवलीनिं ते किम हुइ'' एहबूं कहइ छइ ते न घटइ, जे माटि लब्धिफल सर्व केवलीनि छइ तो हि पणि लब्धिप्रयोग नथी ॥८९॥
"घातिकर्मक्षयथी ऊपनी जीवरक्षाहेतु लब्धि प्रयुज्या विना ज केवलीनिं हुइ' एहवू मानइ छइ तेहनि मतिं चउदमि गुणठाणइ मशकादिकर्तृक मशकादिवध मान्यो छइ तेह पणि न मिलइ, नहीं तो तेमि गुणठाणइ पणि तेहवो ते मान्यो जोईइ ॥९०|
"द्रव्यहिंसाई केवलीनिं १८ दोषरहितपणूं न घटइ'" एहवू कहइ छइ तेहनि मतिं द्रव्यपरिग्रह छतां पणि १८ दोषरहितपणूं न मिलइ ॥९१॥
"प्राणातिपात मृषावादादि छद्मस्थलिंग मोहनीय अनाभोगमा एकइ विना न हुइ ते मार्टि बारमि गुणठाणइ मृषा भाषा कर्मग्रंथादिकमां कही छई स संभावनारूढ जाणवी,' एहयूं कहइ छइ तेहनि पूछवू जे द्रव्यभाव विना संभावनारूढ त्रीजो किहां कहिओ छइ कालशूकरिकनि कल्पित हिंसानी परि ए संभावनारूढ मृषावाद लेवो एहवू लिख्यूं छइ तेहनि अनुसारिं तो अंतरंग भावभृषावाद ज बारमइ गुणठाणइ आवइ ।।१२।।
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