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________________ [39] एहवूं आचारांगचूर्णिमां कहिउं छइ तिहां चउदमिं गुणठाणइ योग नथी ते मार्टि तिहां केवलिकर्तृक मशकादिवध न होइ पणि मशकादिकर्तृक ज होइ, तद्गतापादानकर्मबन्धकार्यकारणभावप्रपंचनिं अर्थि ए ग्रंथ छइ एहवी कल्पना करइ छइ ते खोटी, जे मार्टि सामान्यथी साधुनिं अवश्यभाविजीवघातनि अधिकारिं ज ए ग्रंथ चाल्यो छइ. तथा चउदमिं गुणठाणइ मशकादिकर्तृक ज मशकादिघात कहिइ तो पहिला पणि तेहवो ते होइ युक्ति सरिखी छइ ते माटिं मोहनीयकर्म होइ तिहां तांइं जीवघातकर्ता कहिइ एह वचन पणि प्रमाणिक नहि, जे मार्टि प्रमादि ज प्राणातिपातकर्ता कहिओ छड़ इत्यादिक इहां घणूं विचारखूं ॥८१॥ "प्राई असंभवी कदाचित् संभवइ ते अवश्यभावी कहिइ एहवो जीवघात अनाभोगि छद्मस्थसंयतनि होइ पणि केवलीनिं न होइ " एहवूं कहइ छइ ते न घटइ, जे माटिं अनभिमतपणइ पणि अवर्जनीय ते अवश्यभावी कहिइ तेहवो द्रव्यवध अनाभोग विणा पणि संभवइ जिन यतीनि नदी उतरतां ॥८२॥ "केवलीना योग ज जीवरक्षानुं कारण" एहवूं कहइ छइ तेहनि मति चउदमइ गुणठाणइ जीवरक्षाकारणयोग गया ते माटि हीनपणूं थयूं जोईइ ॥८३॥ "केवलीनिं बादरवायुकाय लागइ तिवारिं तथा नदी उतरतां अवश्यभाविनी जीवविराधना थाइ तिहां जे एहवूं कल्पइ छड् बादरवायुकाय अचित्तज केवलीनिं लागइ तथा नदी ऊतरतां केवलीनिं जल अचित्तपणइ ज परिणमइ" तिहां कोइ प्रमाण नथी, केवल योगनो ज एहवो अतिशय कहिइ तो उल्लंघन - प्रलंघनप्रतिलेखनादि व्यापारसूं निरर्थकपणुं थाइ ॥ ८४ ॥ एणि ज करी ए कल्पना निषेधि जे केवली गमनादिपरिणत होइ तिवारिं आपि ज कीडी प्रमुख जीव ओसरइ अथवा ओसरिया होइ पणि केवलीनी क्रियाई प्रेरी क्रिया न करइ, जे मार्टि इम कहतां जीवाकुल भूमि देखी केवलीनिं उल्लंघनादि व्यापार पत्रवणामांहि कहिओ छइ ते न मिलइ तथा वस्त्रप्रतिलेखना पणि न मिलइ ॥८५॥ " अभयदयाणं ए सूत्रनी मेलि भगवंतना शरीरथी जीवनिं सर्वथा भय न उपजइ" एहवूं कहइ छइ ते न मिलइ, जे मार्टि भगवंत वस्त्रादिकथी जीव अलगा मूकइ तेहनि भय विना अपसरण न संभवइ तथा 'अभयदयाणं' ए वचनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229405
Book TitleMahopadhyaya Yashovijayjigani krut 101 Bol Sangraha Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size510 KB
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