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अनुसंधान-२०
दिन जिही रात हर षातसुररातबल तरलविवुसिद्धरिवसरलतंडैः चंडकाचारउड्डभवडंडमैः डमरआखंडरविचरण मंडै || तो मडडमरः अखंडडमडमः चंडडुलचतः मंडधरपतः शत्रुत्रजत निसभभ्रतजतः थंभभयतः उदभभरायत: जगगहतः मयंगरबदरंगतरगमयंगतजयु मधु धुकतसमधुधमधमकंधधरणवसधरणी ॥१॥
-x--- कवि जिनेन्द्रकृत मेवाडको कवित
दुहा !! मन धर माता भारती, कवियां कौतिक काज । गुणवर्णन मेवाडना, करसुं कोइक काज ॥१॥ देश घणाई देखीया, के वलि सुणीया कांन । मेदपाट सम को नही, देखत होइ हेरांन ॥२॥
छंद हाटकी ॥ नही उन्हो खाणो नही दोझाणो राणा केरो देश जव मक्की रोटा छोटा खोटा खारी खाय हमेस । लुका सुका आहारी सहू नरनारी काला पहिरण वेस मेवाडे देसे भूले चूके मत करज्यो परदेस ॥१|| पगपग जिहा माठा काठा भाटय ठोकर लागे ठेस बालकने बुढा सहू नर मूढा भण्या नही लवलेस ।
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