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वादी हर्षनन्दन कृत जिनसागरसूरि गीतानि
म. विनयसागर
गहूंली, गीत, भास आदि संज्ञक रचनाएँ सद्गुरु के प्रति अपनी हृद्गत भावनाओं को प्रकट करती हैं ।
वादी हर्षनन्दन
इन गीतों के प्रणेता वादी हर्षनन्दन हैं । हर्षनन्दन महोपाध्याय समयसुन्दरजी के प्रमुख शिष्य थे । इनका जन्म कब हुआ, दीक्षा कब ग्रहण की, वादीपद एवं उपाध्यायपद कब प्राप्त हुआ एवं स्वर्गवास कब हुआ ? इत्यादि के सम्बन्ध में कोई भी ऐतिह्य प्रमाण प्राप्त नहीं है । कल्पनाति आधार से कुछ प्रमाण एकत्रित किए जा सकते हैं, जो निम्न हैं :
जिनचन्द्रसूरिने अपने आचार्य काल में (१६१२ - १६७०) ४४ नन्दियाँ स्थापित की थी । इसमें से २७वीं नन्दी 'नन्दन' है । इस आधार से अनुमान किया जा सकता है कि संवत् १६४४ और १६४५ के बीच में इनको दीक्षा जिनचन्द्रसूरि ने प्रदान की होगी । जन्म स्थान का पता नहीं, किन्तु राजस्थान के निवासी हों और बाल्यावस्था में दीक्षित हुए हों, ऐसी कल्पना की जा सकती है ।
समयसुन्दरजी ने 'गुरुदुःखितवचनं' में स्पष्ट लिखा है - 'उत्कालिक - कालिक इत्यादि तपोवहन जिन्होंने किया हो, जिनको गच्छनायक को कहकर वाचकादि पद प्रेम से दिलाया गया हो, जिन्होंने बड़े - बड़े विशाल क्षेत्रों में गीतार्थ नाम धारण कर यशोपार्जन किया हो, जो तर्क - व्याकरण और काव्यादि विद्याओं में पारगामि हों, सूत्र - सिद्धान्त की चर्चा में वस्तुस्थिति प्ररूपक हों, पृथ्वीमण्डल में वादी हों और यशस्वी हों, हिन्दू और मुसलमानों के मान्य हों और सर्वगच्छों के मान्य हों, गच्छ के कार्यकर्ता हों; ऐसे शिष्य भी यदि गुरु की वृद्धावस्था में सेवा न कर सकें तो उन शिष्यों का होना निरर्थक है । जो गुरु को दुःखी करते हों, जिनमें लोकलज्जा भी नहीं हों, ऐसे शिष्यों