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डिसेम्बर २००८
अत्यावश्यक ही है । ईख से गुड या शक्कर बनाने के लिए ईख का यन्त्रपीडन आवश्यक है । तेल निकालने के लिए भी यन्त्रपीडन आवश्यक है।
रसवाणिज्य में मुख्यतः मद्य की गिनती की है। जब सप्त व्यसनों में मद्य का निषेध स्पष्टत: किया है तो यहाँ रसवाणिज्य में उसे अन्तर्भूत करना अटपटा सा लगता है । रसवाणिज्य अगर निषिद्ध माना जाए तो आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सभी प्रकार के ज्यूस, जाम, जेली और उसपर आधारित कई व्यवसाय सब निषेध की कोटि में आ जायेंगे । इस प्रकार बहुत सारे व्यवसाय निषिद्ध कोटि में डालना औचित्यपूर्ण भी नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है । प्रासुक भिक्षा के रूप में भ. ऋषभदेव ने ईख का रस ग्रहण करने की विधि ग्रन्थों में वर्णित है। अगर ईख का रस स्वीकार्य है तो उसपर आधारित व्यवसाय निषिद्ध मानना तर्कसंगत नहीं है।
इसी प्रकार. 'दवग्गिदावणया' का समावेश 'इंगालकम्म' और 'वणकम्म' में हो सकता है । 'साडीकम्म' को अगर आधुनिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो उसमें सभी प्रकार के वाहन बनाने का समावेश किया जा सकता है। पुराने जमाने में शायद वाहनप्रयोग से होनेवाली हिंसा का जिक्र करके वाहनप्रयोग का निषेध किया होगा ।
लेकिन पुराने जमाने से ही जैन श्रावको के दूर दूर के देशों में जाकर व्यापार करने के वर्णन आगमों में पाये जाते हैं। इसलिए शकटकर्म का निषेध करना भी तर्कसंगत नहीं है । वाहन, मकान आदि भाडे से देने का व्यवहार पुराने जमाने से ही जैनों में प्रचलित है । तथा पैसे ब्याजपर देने का जैन समाज का पीढीजात धन्धा है। इस परिस्थिति में 'भाटीकर्म' को निषिद्ध व्यवसाय मानना
भी तर्कसंगत नहीं है। • श्रावक स्वदारसन्तोषव्रत का पालन करता है इसलिए वेश्याव्यवसाय
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