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डिसेम्बर २००८
(१५) असईजणपोसणया ( असतीजनपोषण ) : धन कमाने के लिए और व्यभिचारवृत्ति के लिए वेश्या, दासी, नपुंसक आदि का पोषण करना । शुक-सारिका - मार्जार-कुक्कुट मर्कट- श्वान - शूकर आदि का पोषण करना ।
इंगाली आदि कर्मादानों से अग्निकायिक आदि एकेन्द्रियों की तथा सभी षड्जीवनिकायों की हिंसा होती है । इसलिए ये कर्म निषिद्ध माने गये हैं।
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कर्मादानों के स्वरूप की समीक्षा :
इन पन्द्रह में से दन्त - रस- लक्ख-विस और केस इन शब्दों के साथ ही 'वाणिज्य' शब्द का प्रयोग हुआ है । बाकी सबको सिर्फ 'कर्म' कहा है। इससे शायद यह सूचित होता है कि निषिद्ध व्यवसाय के रूप में ये पाँच ही प्रमुखता से अपेक्षित है ।
सामान्यत: पन्द्रह कर्मादानों को उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत के अतिचार के रूप में प्रस्तुत किया गया है । अन्य श्रावकव्रतों के भी पाँच पाँच अतिचारों की गिनती की गयी है। उदाहरण के तौर पर सामायिकव्रत के अतिचार में कहा है कि अगर सामायिक करते समय हम यह भूल गये कि हम सामायिक कर रहे हैं और अन्य विचार तथा काम करने लगे तो यह सामायिकव्रत का अतिचार हुआ । इसपर क्या उपाय है ? जब हमें खुद का दोष महसूस हुआ तो हम प्रतिक्रमण आदि करके उस दोष से निवृत्त हो सकते हैं और स्वस्वरूप में स्थित हो सकते हैं ।
लेकिन कर्मादानों के बारे में इस प्रकार की प्रक्रिया हम नहीं कर सकते । अगर हमारा इक्षुरस बनाने का व्यवसाय है तो हमें जानना चाहिए कि यह 'यन्त्रपीडनकर्म' है। समझो कि हमें यह सच मालूम हुआ तो प्रतिक्रियारूप उस व्यवसाय को ही हमेशा के लिए छोड़ दे या हररोज उसका प्रतिक्रमण करते रहें ? इस प्रकार बहुत सारे कर्मादानों को 'अतिचार' रूप लेने में अडचनें पैदा होती हैं । वे सुलझाने का दिग्दर्शन इस श्रावकाचार से नहीं मिलता ।
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