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बे भास
सं. मुनि जिनसेनविजय विहार करतां करतां अमे थोडा समय पूर्वे लींबडी गया, त्यांना ज्ञानभंडारामांथी गौतमगणधरनो भास तथा सुधर्मस्वामी गणधरनो भास लखेल एक प्रकीर्ण पत्र जोवामां आवतां तेनी नकल करेली जे अहीं छपाय छे. बन्नेमां क्यांय कानुं नाम नथी. पण प्रमाणमां अर्वाचीन एटले के बहु प्राचीन नहि एवी आ कृति छ एम लागे छे..
श्री गौतमगणधर भास राजगृही राळियामणी जिहां गुणशीलचैत्य सुठाम साजन मोरी मोरी हे. आवो सवाई गुरु भेटवा कांई मेटवा कर्म कठोर सा० मुनिगण तारामां चंद्र ज्यूं आव्या गणि गौतमस्वाम सा० ॥ १ पांचे इंद्रिय वश करे वली पाले पंच आचार सा० सुमति-गुपतिधारी परिवहै पंच महाव्रतभार सा० ॥ २ नववाडि ब्रह्म धरै सदा वली परिहरे चार कषाय सा० लब्धि अट्ठावीशनो धणी ज्यों आठ प्रभाव कराय सा० ॥ ३ पहेरी पीत पटोलड़ी उपरि नवरंगो घाट सा० कुमकुम घोळशुं साथिओ करी अक्षत पूरीशुं घाट सा० ।। ४ लळी लळी कीजे लूंछणा लेइ रजत कनकनां फूल सा० करो जिनशासन परभावना वजडावो मंगलतूर सा० ॥ ५
श्री सुधर्मगणधर भास ज्ञानादिक गुणखाणी राजगृही उद्यान गणधर लाल
सोहमस्वामी समोसर्याजी ॥ १ कंचन गौर शरीर वाणी गंगा नीर गण०
त्रिहुं पंथ पसरे सदाजी ॥ २ अंग अग्यार उपांगह बार दशविध रुचिनो धार ग०,
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