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ऑक्टोबर २००२ प्रीति-प्रसन्नता प्राप्त थाय तेमज मृतात्माओ मात्सर्य त्यजी, निर्वैर बनी, प्रीतिभाव सर्जी, सुख-गति प्राप्त करे अने अप्रसन्नता छोडीने सुप्रसन्न थाय तेवी प्रार्थना अहीं करवामां आवी छे.
वळी, आ तर्पणविधि करवाथी मूळ अने अश्लेषा नक्षत्रमा जन्मेला जनकना ते दोषो शमे छे: कुस्वप्न, अपशुकन, अपमुहूर्त-आदिरूप अशुभ भावो शुभमां परिणमे छे: चोर नासे छे; शत्रु त्रासे छे; सर्पादि मूंझाय छे; वैरीओ शोकग्रस्त थाय छे; उपद्रवो नष्ट थाय छे; वृक्षो फळे छे; धान्य नीपजे छे; पृथ्वी पर नित्य उत्सव प्रवर्ते छे - इत्यादि अनेक वातो प्रार्थनाना सूरमां आमां सूचवाई छे. दंडकने प्रांते सौनां कल्याणनी शुभ प्रार्थना मूकी छे.
दंडकविभाग पछी आवे छे अनुष्ठानविभाग. आ तर्पणविधिने 'ऋषभतर्पण' नाम आपवामां आव्युं छे अने आ कृतिना छेवाड़े निर्देश्युं छे तेम आ विधि जैन श्वेतांबर संघने प्राणपणे पूज्य श्रीशत्रुजयतीर्थ(पर्वत) पर आवेला रायणपगलां (ऋषभदेवनी रायणवृक्ष तळे विराजती पादुका) समक्ष ज करवानो छे तेथी, आ बीजा विभागमा प्रथम, यजमाने (तथा विधिकारके) भूमिशुद्धि तथा स्नानाचमन मंत्रपूर्वक कर्या पछी, ऋषभदेवनी प्रतिमाने पूर्वाभिमुख के उत्तरभिमुख पधरावीने ते पर सुगंध-जल-कलशाभिषेक, दूधनो, घीनो, इक्षुरसनो तथा सवौषधीनो अभिषेक-करवाना छे. ते पछी पुष्प, अक्षत, फल, धूप, नैवेद्य पूजा करीने आरती-मंगलदीवो करवापूर्वक ऋषभतर्पणनो दंडक-पाठ बोलता बोलतां अखंड जळधारा वडे शांतिकळश भरवानो छे. आथी समजाय छे के पहेला विभागमांना दंडक-पाठनो उपयोग अहीं करवानो छे. आ रीते, विधि पूरो थया बाद मंत्रपाठपूर्वक मुनिराजोने सुपात्रदान करवानुं सूचन छ ने त्यारबाद विसर्जनविधि छे.
प्रान्ते आ ऋषभतर्पण समृद्ध गृहस्थ वर्षमां बे वार करावे तो तेने विपुल लक्ष्मी मळे छ; अने शत्रुजयतीर्थे रायणवृक्षतळे करे तो तेना पूर्वजोनी सद्गति थाय छे तथा तेना दोषो शमे छे, अम महिमा वर्णव्यो छे, अने सूचव्युं छे के आ विधि, उपरिकथित हेतुओ सिवाय पण, बिंबप्रतिष्ठा, देवभोज्य अने विवाह आदि मंगल कार्योना अवसरे करवामां आवे तो, ते करनारने कार्यसिद्धि थाय छ; पुत्रीने बदले पुत्र प्राप्त थाय छे: लाभ न थतो
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