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अनुसंधान-२१ कोईक काळे, आ अजैन कर्मकांड तरफ वळवा मांड्यो हशे, अने ते तरफ वळतो तेने अटकाववा माटे के पछी जैन परंपरा प्रति पाछो वाळवा माटे, कोईक विचारवंत पुरुषे आ तर्पण-अनुष्ठाननं निर्माण कर्य हशे. जळस्नानमंत्रमा आवतां 'स्वर्णरेखा' नदी अने 'गजपद' कुंडना उल्लेख परथी आ रचना अने तेना रचनारनो संबंध सौराष्ट्रनो संबंध सौराष्ट्र प्रदेश साथे होवानुं समजी शकाय छे.
एकंदरे शुद्ध छतां कृतिना पाछला भागनां केटलांक पद्यो अशुद्ध छे. कृति बे भागमां वहेंचायेली छे : पहेला भागमां ऋषभतर्पणनो दंडक-पाठ छे, अने बीजा भागमां तर्पणनो पूजा विधि छे. भाषा घणी मधुर अने रोचक छे. दंडक-पाठमां ऋषभदेव (प्रथम जैन.तीर्थंकर), पुंडरीक स्वामी (ऋषभदेवना पट्टशिष्य), मरुदेवा (ऋषभदेवनां माता), नाभिराजा (ऋषभदेवना पिता), भरत चक्रवर्ती अने बाहुबली (ऋषभदेवना बे पुत्रो), सुमंगला अने सुनंदा (ऋषभदेवनां बे पत्नी), ब्राह्मी अने सुंदरी (ऋषभदेवनी बे पुत्रीओ), मरीचि अने श्रेयांस (ऋषभदेवना पौत्रो) तथा गौतमगणधर समेत वर्धमान स्वामीआटलां इष्ट तत्त्वोनुं स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, वषट्, नमः वगैरे जुदां जुदां मंत्रबीजाक्षरो-पुरस्सर स्मरण-स्तवन करवामां आव्युं छे. ते पछी तर्पणविधि करावनार यजमानने माटे प्रार्थनाओ छे. एमां चक्रेश्वरी देवी, गोमुखयक्ष, १६ विद्यादेवीओ तथा महालक्ष्मी, त्रिपुरा इत्यादि अन्यान्य अनेक देवताओने पण स्मरवामां आव्यां छे, ते नोंधपात्र छे. ते पछी आ तर्पणविधि ज्यारे करातो होय ते वर्ष-अयन-ऋतु-मास-पक्ष-तिथि-वारना निर्देश सहित, आ तर्पणविधि जेना श्रेय-गति अर्थे थतो होय ते मृत पितृओनो उल्लेख करवानुं सूचन छे.
ते पछी आ तर्पण कराववाथी थता लाभो आ प्रमाणे नोंध्या छे : आ तर्पण थकी सघळां पूर्वजो तृप्ति पामे छे; जे पूर्वजो/स्वजनो अग्नि, विष, सर्प आदि कारणे के शत्रुकृत कामण टूमण के शस्त्र प्रयोगथी मर्यां होय; कूवा आदिमां डूबीने के पर्वत परथी जंपापात करीने के भूख- तरस-रोगादिवशे माँ होय; धननाशने के प्रियना. वियोगने लीधे जे मयाँ होय; वळी कोई बाळक, युवान, वृद्ध, स्त्री, हठाग्रही कुमारी, पुत्रविहोणां गोत्रीया जनो, ऋणने लीधे पूर्वजन्मनां वैरी होय तेवा लोको बगर जे कोई मर्या हाय. तं सान
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