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अनुसन्धान ४७
देश और उकेशपुर (ओसियां) में सुकृत कार्य किए थे । उन्हीं की वंश परम्परा में श्रेष्ठी गजु हुए और उनके पुत्र गणदेव हुआ । गणदेव का पुत्र धांधल हुआ। जो की मम्मण कहलाता था और जिसने मुमुक्षु बनकर पद्मकीर्ति नाम धारण किया था ।
श्रेष्ठी आंबा, जींदा और मूलराज ये चाचा के पुत्र थे और जिन्होंने जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाकर शासनोन्नति का कार्य किया था । उन्होंने ही फुरमान प्राप्त करके संवत् १४३६ में शत्रुजय आदि तीर्थों का श्री जिनराजसूरि के सान्निध्य में संघ निकाला था । इस संघ में ५०,००० रूपये व्यय हुए थे । धांधल की भार्या का नाम श्री था। उसके दो पुत्र थे- जयसिंह और नृसिंह ।
श्रेष्ठी मोहन के दो पुत्र थे- कीहट और धन्यक । इन्होंने भी शत्रुजय का संघ निकालकर संघपति पद प्राप्त किया था । इन्होंने ने ही जेसलमेर में अपने बन्धुओं के साथ संवत् १४७३ में जिनमन्दिर और प्रचुर प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई थी । जयसिंह के दो पत्नियाँ थी - सिरू (सरस्वती),....! सरस्वती के दो पुत्र थे - रूपा और थिल्ला । रूप की पत्नी का नाम मेलू
और चिपी था । उनका पुत्र नाथू था । नाथू के दो पुत्र राजा और समर थे। थिल्ला के दो पुत्र थे- हरिपाल और हरिश्चन्द्र । हरिपाल के दो पुत्र थे- हर्ष और जिनदत्त । हरिश्चन्द्र का पुत्र था उदयसिंह ।
श्रेष्ठी नरसिंह की भार्या का नाम धीरिणि था । उनके दो पुत्र हुएभोजा और हरिराज । भोजा की पत्नी का नाम भावल देवी और उसका पुत्र गोधा था । उसके दो पुत्र थे- हीरा और धन्ना ।।
श्रेष्ठी नृसिंह का द्वितीय पुत्र हरिराज छत्रधारी था । देवगुरु अरिहंत धर्म का उपासक था और स्वपक्ष का पोषण करने वाला था । हरिराज की दो पत्नियाँ थी- राजू और मेघाई ।
इधर पारख वंशीय कर्ण की प्रिया का नाम कर्णादे था । उसके चार पुत्र हुए- नरसिंह, महीपति, वीरम और सोमदत्त । चार पुत्रियाँ थी। जिसमें तीसरी पुत्री का नाम मेघाई था। जिसका विवाह हरिराज के साथ हुआ था।
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