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March-2004
हरिभद्रसूरि थया छे, तेम कर्ता लखे छे. आ. मानतुङ्गना शिष्य आ. हरिभद्र होवानुं कर्ता जणावे छे, तो ते १४४४ ग्रन्थ-प्रणेता हरिभद्राचार्य करतां भिन्न ज हशे. तेमनी परम्परामा क्रमशः सर्वदेवसूरि, वादी देवसूरि, अजितदेवसूरि, जयसिंहसूरि, नेमिचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, रत्नसिंहसूरि थया छे. ते पछी थयेला विनयचन्द्रसूरिने वीसलदेवनी राजसभामा 'सिद्धान्ती' बिरुद मळ्यानी नोंध परथी ते गच्छनुं नाम 'सिद्धान्तगच्छ' प्रसिद्ध थयुं हशे तेम मानी शकाय.
ते पछीनी परम्परामां शुभचन्द्रसूरि, नाणचन्द्रसूरि, अजितचन्द्रसूरि, सोमचन्द्रसूरि अने छेल्ले देवसुन्दरसूरि थया. कर्ता कहे छे के हुं ते देवसुन्दरगुरुनो शिष्य छु.
आ प्रमाणे महापुरुषोनां नामकीर्तन अने गुणस्तवनरूप भूमिका बांधीने हवे कल्प-व्याख्याननो आरम्भ करतां पहेलां पंच मंगलमय श्रीनवकारसार्थ-संक्षिप्त वर्णन कर्ता करे छे, अने ते कर्या बाद तुरत ज कल्पसूत्रनुं वांचन प्रारम्भवाना संकेतरूपे अहीं कर्ताए सूत्रनुं एक वाक्य आलेखीने मांडणी समाप्त करी छे.
प्रान्ते लखेली पुष्पिका परथी सिद्धान्तीगच्छना गच्छपति देवसुन्दरसूरिना शिष्य मुनि देवाणंदे सं. १५७०मां पाटणमां आ प्रति लखी तथा रची होवार्नु सिद्ध थाय छे.
आ प्रति भावनगरनी जैन आत्मानन्द सभाना ज्ञानभण्डारमा, क्र. ३५४ तरीके अने "आचार्योए करेला शासनोन्नतिनां कृत्यो" ए नामे विद्यमान छे. तेनी जेरोक्स नकल परथी आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. पत्रसंख्या ७ छ, तथा कर्ताना स्वहस्ते ज लखायेली जणाय छे. अक्षरो दिव्य छे, सुवाच्य छे, अने पडिमात्रावाळी लिपिमा लखाया छे. प्रतिनी नकल आपवा बदल ते सभाना कार्यवाहकोनो आभारी छु.
गद्यात्मक आ रचना भाषानी दृष्टिए अभ्यास करनाराओने पण उपयोगी थशे एवी आशा छे.
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