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"वाचक यशोविजयरचित समुद्र--वहाण संवाद" [ कर्तानी स्वहस्तलिखित प्रति(खरडा)ना आधारे पाठ-संशोधन ]
-- मुनि शीलचन्द्रविजय
मध्यकालीन साहित्य, विशेषतः जैन साहित्य संवाद प्रकारनी अनेक रचनाओथी समृद्ध छे. १७-१८ मा शतकना समर्थ जैन ग्रन्थकार उपाध्याय श्रीयशाविजयजीए पण, वि.सं. १७१७ मां, दरियाकिनारे आवेला घोघा बंदरे पोताना चातास दरमियान "समद-वहाण संवाद नामे एक स-रस कति रची छे. आ कृति ई.स. १९३६मा प्रकाशित गर्जर साहित्य संग्रह -प्रथम विभाग मां श्री मोहनलाल दलीचंद देसाईए संपादित करीने मदित करावी छे. तेमा प्रान्ते जोवा मळती नोंध प्रमाणे ते संपादन खेडा भंडार नो प्रतिना आधारे थयानं जणाय
मुद्रित एहने
ताजेतरमा ज आ कृतिनी कर्ताए स्वहस्ते आहा खरड़ा (Draft) रूपे लखेली प्रति जोवामां आवतां तेना तथा मदितना पाठो मेळववान मन थयं. भाषानी रीते तो घणावधा भेदो छ ज, जे माटे अवसरे आ कृतिने तेना कानी ज भाषामा प्रकाशित करवा जोग गणाय; परंत पाठोनी दृष्टिए पण केटलाक तफावतो नजरमा आवतां ते तफावता अहीं रजू कर्या छे. पंक्ति
प्रति (१) टूहा : ४-१
एहोनई मांहो मांहे माहोमाहि ४-३ थइ ढाल १ नं मुखडु - मु. फागनी; - थाहरा मोहला उपर मेह झरोखें वीजळी रे
के वीजळी ए देशो. ॥ प्रतिमां-त्रिभुवन तारण तीरथ पास
चिंतामणी रे २ ए देशी ढाल १ : ३-३ तूरहि वाजे तूर दिवाज
सुर बहू रे सुरवहू रे साह्य
साई तिणे
तणई गर्वे चढावे पर्वत गर्व घडावइ पर्वति
पर-कह्यो पर-कहिया ७-४ ग्रह्यो
ग्रहा
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