________________
वाचक- सिद्धिचन्द्रगणिकृतः मङ्गलवादः ॥
- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
विक्रमना १६मा तथा १७मा शतको मां प्रभावशाली जैनाचार्य श्रीहीरविजयसूरिजीए तथा तेमना प्रतापी शिष्य-प्रशिष्योए ज्ञानाभ्यास अने साहित्यसर्जनना क्षेत्रे जे खेडाण कर्यु छे, तेनी तुलना तो मात्र ११ - १२मा शतकमां, सोलंकीकाळमां थयेला साहित्यिक खेडाण साथै ज करी शकाय तेम छे. आ समयमा अनेक जैन मुनिवरोए काव्य, साहित्य, अलंकार, तर्क, व्याकरण, आगम वगेरे विषयो पर ग्रंथो तेमज टीकाग्रंथोनो मबलख फाल आप्यो छे, जेनी नोंध लीधा विना कोई इतिहासकार रही न शके.
आ सर्जक वृन्दमांना ज एक समर्थ ग्रंथकार ते वाचक सिद्धिचन्द्र गणि. पोताना गुरु वाचक भानुचन्द्र गणिनी साधे, गुर्वाज्ञानुसार तथा बादशाहोनी विनंतिथी, शाह अकबर तेमज जहांगीरना दरबारोमां दायकाओ पर्यंत शाहमान्य पवित्र विद्वान धर्मोपदेशक साधु तरीकेनुं स्थान- मान भोगवनार, अकबरना हाथे "खुशफहम "नुं बिरुद प्राप्त करनार, १०८ अवधानो करनार, रूप, वाक्पटुता, विद्वत्ता अने फकीरीने कारणे बादशाहो तथा नूरजहां जेवी बेगमोने पण प्रभावित करनार वाचक सिद्धिचन्द्र गणिए रचेला ग्रंथोनी उपलब्ध यादी आ प्रमाणे छेः कादम्बरी-वृत्ति (उत्तरार्ध), वासवदत्ता - वृत्ति, विवेकविलास वृत्ति, काव्यप्रकाशखण्डन, अनेकार्थनाममाला( अमरकोषनानार्थ) वृत्ति, भानुचन्द्रगणिचरित, प्राकृतसुभाषितसंग्रह, मंगलवाद इत्यादि. पोतानो अछडतो परिचय आपतां वासवदत्ता -वृत्तिना आरंभमां तेओए जे नोंध आपी छे, ते अत्यंत महत्त्वपूर्ण तथा अचंबो पमाडे तेवी छे :
तत्पट्टपाथोनिधिवृद्धिचन्द्रः श्रीसिद्धिचन्द्राभिधवाचकेन्द्रः । बाल्येऽपि यं वीक्ष्य मनोज्ञरूप-मकब्बरः पुत्रपदं प्रपेदे ॥ पुनर्जहांगीरनरेन्द्रचन्द्र - प्रदीयमानामपि कामिनीं यः । हठेन नोरीकृतवान् युवाऽपि, प्रत्यक्षमेतत् खलु चित्रमत्र ॥
सिद्धिचन्द्र गणि पण, पोताना समयनी परंपरानुसार 'न्यायचिन्तामणि' ग्रंथना प्रकांड अध्येता हता. ते अध्ययनना परिणामे खीली उठेली तेमनी तार्किक प्रज्ञानो उन्मेष, तेमना काव्यप्रकाशखण्डन तथा प्रस्तुत 'मंगलवाद' जेवा ग्रंथोमां प्रगटतो जोवा मळे छे..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org