________________
इत्यादि गणाय छ; अने 'ईति-उपद्रव एवो शब्द गुच्छ हमेशा साथै प्रयोजातो होई, अहीं पण 'ईलति एटले 'उपद्रव' एम स्वीकारवामां आपत्ति नथी.
त्रीजी रचना आम तो एक ज ढाळनी छे, परंतु तेना पर 'गीतगोविन्द' नी स्पष्ट असर जोई शकाय छे. कवि जयदेवे पोताना ए अद्भुत काव्यगीतना प्रथम सर्गनी बीजी ढाळ आ ज रीते उपाडी छ :
"श्रितकमलाकुचमण्डल, धृतकुण्डल ए कलितललितवनमाल जय जय देव हरे ! ।।'' । प्रस्तुत रचनाने आ गीत साथे सरखावीए तो तेना पर ते गीतनो प्रभाव वरताया विना रहेतो नथी. प्रसिद्ध तार्किक अने दार्शनिक उपाध्याय यशोविजयजी पोताना कर्कश तर्क अने सिद्धान्तग्रंथो माटे जेटला जाणीता छ, तेटला ज पोताना गेय-मधुर भाषाबद्ध भक्तिकाव्यो माटे पण प्रख्यात छ ज. जो के एमनी संस्कृत गेय कृतिओ बहु मळी नथी. "आदिजिनं वन्द गुणसदन" थी शरू थती ५-६ कडीनी एक गेय कृति मात्र प्राप्त छे. ए संजोगोमा एमनी आ लघुकृतिनुं पण घणु महत्त्व गणाय.
आ त्रणे कृतिओनी मात्र एकेक ज झेरोक्स नकल, मारा मित्र विद्वान कवि मुनिवर श्रीधुरन्धरविजयजी द्वारा, प्राप्त थई छे. अन्यान्य भंडारोमा तपास करतां जा बधांनी अन्य प्रतिओ मळी आवी शके. मने मळेली प्रति-नकलोमां केटलीक अशुद्धिओ छे, जे प्रस्तुत संपादनमा लगभग यथावत् राखी छे, अने प्रश्नचिह्न द्वारा तेनो त्या-त्या निर्देश कर्यो छे.
जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरिरचित नामेयस्तवन
___ ॐ नमः सिद्धं ॥ त्रिभुवनप्रभुताभवनक्रमो प्रसभभक्तिवशेन नतस्तव ! प्रथमतीर्थपते ! स्तुतिगोचरं सुविनये विनयेन नतामरम् ।। १ ।।
(यमकबन्धः) __ अथ छन्द रासकाख्यम् ॥ सकलकलायुतसोमसमानन सुरनरकिन्नरविहितसुमानन ।
मानवहितकृतदान (दान) तु . जय जय मानवहितकृतदां (दा)न तु !! २ ।।
(छन्दस्त्रिपदी) ।।
[6]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org