________________
अनुसंधान-२८
९मा अष्टकनुं नाम 'वानरवल्लभाष्टक' छे. तेना प्रथम पद्यमां 'वानरवल्लभेन' एवो प्रयोग छे, ते परथी ते कोई कवितुं नाम होवानुं अनुमान थाय छे. सुभाषितोना प्रसिद्ध संग्रहो जोवाथी आ विषे विशेष जाणकारी मळे ते सम्भवित छे. आ ज पद्यमां 'उल्लिङ्गनावृत्तमुदाजहार' - उल्लिङ्गना वृत्तनो (के उल्लिङ्गनाना चरित्रनो ?) दाखलो आप्यो' एवो प्रयोग छे, तेनुं तात्पर्य पण मेळवतुं रहे छे.
पद्यसंख्या तपासीए तो प्रथम प्रतीक श्लोकने बाद करीने ज अष्टकोनी ८-८ श्लोकोनी संख्या प्राप्त थाय छे. तेथी १, ३, ४, ५, ७, ९, १२, १४, १७ आटला अष्टको मां ९-९ पद्यो छे. ते सिवायनां अष्टकोमा देखाती वधघट आम छे : २, ११, १५, १९, २०, आटलां अष्टकोमा १० पद्यो, ६मां ११ पद्यो, १३मां ७ पद्य, १६ अने १८ मां ८-८ पद्यो छे. कुल पद्य संख्या १७५ थाय छे.
१३मा सत्पुरुषाष्टकमां प्रतीक-पद्यमां 'नम्रत्व' अने 'विपदि' ए बे प्रतीको होवा छतां ते प्रतीकथी प्रारंभाता श्लोको नथी. ते क्रमशः 'नम्रत्वेनो नमन्तः' तथा 'विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा' - ए बे प्रसिद्ध पद्यो होय तेम अनुमान थाय छे. १५मा अष्टकमां छठ्ठा पद्यनुं मात्र प्रतीक ज लखेल छे, पद्य नहि; ते ज रीते १६-२ तथा १९-८ विषे पण तेवू ज छे. १६मा अष्टकमां "हंहो चातक' एवं प्रतीक प्रथम श्लोकमां होवा छतां ते पद्य क्यांय छे नहि. तो १६मा अष्टकमां जोडवाना सूचक चिह्न साथे पत्र ८/१ना फाटेल हासियामां 'किमत्र' थी प्रारंभातो त्रुटित श्लोक जोवा मळे छे. १५मा अष्टकमां प्रथमपद्य-प्रदर्शित 'भुक्तं' अने 'तथैव च' प्रतीकवाळा श्लोको नथी, पण 'हंहो' अने 'भ्राम्यद्' (पद्य ९-१०) ए शब्दोथी शरु थतां बे श्लोको छे. आ श्लोकोनो संकेत प्रतीक-पद्यमां नथी मळतो. १८मा अष्टकमां प्रतीक-पद्य ज नथी, अने ७मा श्लोक- १ चरण त्रुटित छे, तो एक चरण छ ज नहि.
१७मा रत्नाष्टकना ८मा श्लोकमां एक मजानो शब्दप्रयोग छे : 'कस'. कवि कहेवा जाय छे के 'कः सः सुहृद्, यस्याऽयमावेद्यते', पण आ शब्दो आ ज रीते योजवा जतां छन्दोभंग थाय, एटले कवि आ शब्दोने बोलचालनी भाषाना अपभ्रष्ट प्रयोगमां ढाळीने लखे छे – 'कस सुहृद्' आवो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org