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अनुसंधान - २६ हरिभद्रसूरिना ग्रन्थो तथा अन्य विविध जैन ग्रन्थोना सन्दर्भों आपीने 'गुरु'नी व्याख्या आपेल छे. तेमां प्रासंगिक एक मध्यकालीन गुजराती कवि 'अखा 'नो छप्पो पण छे.
श्लोक २५मां 'व्रत' नुं स्वरूप, २६मां 'गङ्गाप्रपात - कुण्ड' नी वात तथा १६ विद्यादेवीनां नामो, २७मां 'मन'नुं स्वरूप, २८मां अन्य मतो प्रमाणे 'शब्द' नुं वर्णन कर्या पछी जैनमते तेनुं स्वरूप, 'साधु'नी व्याख्या तथा तेना सन्दर्भे पण्डितराज (जगन्नाथ ) ना बे श्लोको, योगदृष्टिना ८ प्रकारोनी वात, आ अने आवी अनेक वातो जैनमतने अनुसारे पण टीकाकारे आलेखी छे, जे अध्येताओने जैन दृष्टिबिन्दु समजवामां खूब उपयोगी बनी रहे तेवी छे.
श्लोक २९मां 'गो' अर्थात् 'गाय'ना विविध प्रकारो, नामो अने तेनी व्याख्याओ छे, तो 'गो' शब्दना विविध अर्थो पण तेनां उदाहरणो साथै टीकाकारे नोंध्या छे, जे अपूर्व छे. ए ज रीते 'धातु'नी पण अनेक जातिओ तथा तेनी व्याख्याओ अहीं संग्रही छे, ते पण नोंधपात्र गणाय.
श्लोक ३०मां हिंसा-अहिंसानी चर्चा आवे छे. ते प्रसंगे टीकाकार 'जैनमतमां जेवुं आ बन्नेनुं स्वरूप छे तेवुं अन्य कोई मतमां न होवानुं, खुल्लुं प्रतिपादन करीने पछी बौद्ध मत, मनुस्मृति वगेरेना सन्दर्भे टांके छे; तेनां विविध अर्थघटनो नोंधे छ; हिंसाने धर्म प्ररूपती 'श्रुति' अने 'स्मृति' नी अप्रमाणता पुरवार करे छे; अने ते पछी महाभारत, भागवत, शिवपुराण वगेरेना सन्दर्भो टांकीने 'अहिंसा' ज धर्म छे, आचार छे, हिंसा नहि, तेवुं भारपूर्वक स्थापित करो आपे छे.
आ पछी टीकाकार, पोतानुं आ विषयनुं अवगाहन केटलुं व्यापक छे तेनो अणसार आपता होय तेम, जरथोस्ती- पारसी धर्मना धर्मग्रन्थोनां अहिंसापरक वचनो टांकीने तेनुं अर्थघटन आपे छे; लोटीया वोरानी तेमज महम्मदीय अर्थात् मुसलमान (इस्लाम) धर्मनी मान्यताना ग्रन्थो ( कुरान आदि) नां वचनो (आयतो) टांकी तेना अर्थ समजावे छे; अने छेवटे ख्रिस्ती संप्रदायना बाइबल वगेरेनां उद्धरणो टांकीने तेना अर्थ वर्णववा द्वारा पण हिंसा त्याज्य छे. अने अहिंसा ज धर्म छे तथा आचरणीय छे, एम पुरवार करी बतावे छे.
अने आ साथे ज टीकानो छेडो आवे छे. आ वखते थाय के हजी
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