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श्रीपञ्चसूत्र-स्तबक
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि पञ्चसूत्र ए जैन साधको माटे अमृतऔषधतुल्य ग्रन्थ छे. वर्तमान जैन संघमां सर्वाधिक वंचातो-छपातो ग्रन्थ आ पञ्चसूत्र छे, एम कही शकाय. मूळे श्रीमद् हरिभद्रसूरिकृत आ ग्रन्थ कालक्रमे चिरन्तनाचार्यकृत अने ते रीते अज्ञातकर्तृक गणायो छे. तेनां कारण कयां होय ते तो अकळ छे, परन्तु आ बाबत घणी विलक्षण गणाय तेमां शंका नहि. बाह्यान्तर अढळक प्रमाणोना आधारे आ मूळ रचना पण हरिभद्रसूरि महाराजनी ज होवानुं सिद्ध थई शके तेम छे. (जुओ अनुसन्धान-११(ई. १९९८)मा 'पञ्चसूत्रना कर्ता कोण, चिरन्तनाचार्य के आ.हरिभद्र ?' पृ. ७१)
आ बहुमूल्य ग्रन्थ उपर प्रमाणमां, बहु ओछा विद्वज्जनोए पोतानी कलम चलावी छे. तेथी आना उपरनी विवेचनात्मक कोई पण नानी-मोटी कृति मळे तो ते स्पृहणीय बनी रहे तेम छे. श्रीमुनिसुन्दरसूरिकृत अवचूरि 'अनुसन्धान-११'मां मुद्रित थई छे. ते पछी आ ‘पञ्चसूत्र-स्तबक' अत्रे आजे प्रस्तुत थाय छे. आवी बीजी कृतिओ पण अन्यान्य भण्डारोमां सचवाई हशे
प्रस्तुत स्तबकनी प्रति कच्छ-कोडायना ज्ञानभण्डारनी प्रति छे. स्तबक लखनार त्यांना ज एक श्रावक छे : वेलजी भारमल. १९-२० मा शतकना अरसामां कच्छमां अनेक श्रावक-श्राविकाओ थयां, जे विद्वान्, शास्त्रोनां मर्मज्ञ अने तत्त्वपिपासु तेमज अध्यात्मसाधक हतां. ओमनां ज्ञान तथा चिन्तन विषे आ प्रकारनी हस्तप्रतिओ तेमज मुद्रित ग्रन्थादि द्वारा जाणकारी सांपडे त्यारे भारे अचंबो तो थाय ज; अहोभाव पण ऊपजे छे. वेलजी भारमल आ कक्षाना ज एक श्रावक हशे,तेवू अनुमान तेमणे लखेला आ स्तबकना वांचन थकी करी शकाय छे.
पांचेय सूत्रना लगभग एकेएक शब्दने तेमणे सुपेरे खोल्यो छे. खास करीने पांचमा सूत्रमा आवता गहन दार्शनिक पदार्थोनुं बयान करतां सूत्रात्मक वाक्योने समजाववानो तेमनो यत्न प्रशंसार्ह अने विस्मयप्रेरक बने तेवो मजानो छे.
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