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जान्युआरी-2007
पत्तेयबुद्धिलाभेण जाईसरणेण ओहिनाणेण । दट्ठण पुव्वसूरिं तो पच्छा लहइ जिणधम्म ॥५१॥ तत्थ य साहुपसाओ नेयव्वो इत्थ सत्थगारेहिं । सच्छंदमईणं पुण वड्डइ कुमई न संदेहो ॥५२।। संपइ केई सड्ढा गाढं किरियं कुणंति गुरुरहिया । न निस्साई कुणंते हीलंता हुंति अइमूढा ॥५३॥ कुगुरूणं परिहारे सुगुरुसमीवे कियाइ किरियाए । जायइ सिवसुहहेऊ सुसावयाणं न संदेहो ॥५४।। सूरेण विणा दिवसं अब्भेण विणा न होइ जलवुट्ठी । बीएण विणा धनं न तहा धम्मं गुरूहि विणा ॥५५॥ छसु अरएसुं जइ वि हु सव्वगईसुं पि लब्भए सम्म । धम्मं तु विरइरूवं लब्भइ गुरुपारतं ते हिं ॥५६।। जह आहारो जायइ मणसा किरियाइ देवमणुयाणं । सम्मत्तचरणधम्माण परोप्परं एस दिटुंतो ॥५७।। आवस्सयाइ मुत्तुं केई कुव्वंति निच्चलं झाणं । ते जिणमयवरलोयणरहिया मग्गंति सिवमग्गं ॥५८|| सयलपमायविमुक्का जे मुणिणो सत्तमाइठाणेसु । तेसिं हवेइ निच्चलझाणं इयराण पडिसेहो ॥५९।। धम्मज्झाणं चउव्विहभेयं पकुणंतु भावओ भविया । आवस्सयाइजुत्तं जह सुलहो होइ सिवमग्गो ॥६०।। विहिअविहिसंसएणं केई गिण्हित्तु किं पि न(नो?)वायं । किरियं नो भवभीरू कुणंति तेसि पि अन्नाणं ॥६१॥ जइ नत्थि च्चिय गुरुणो ता तेण विणा कहं वहइ तित्थं । अरएहिं बहुएहिं तुंबेण विणा जहा चक्कं ॥६२।। अह दव्वखेत्तकालं 'वियारिऊणं गुरूसु अणुरायं । कुज्जा चइत्तु माणं सुधम्मकुसला जहा होह ॥६३।। नियगच्छे परगच्छे जे संविग्गा बहुस्सुया साहू । तेसिं अणुरागमई मा मुंचसु मच्छरेण हओ ॥६४॥
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