________________
श्री चारूपमण्डन पार्श्वनाथस्तुतिः ॥
- सं. स्व. आगमप्रभाकर मुनि पुण्यविजयजी अहीं नीचे सात श्लोकोवाली एक स्तुति आपेली छे ते पाटण पासे आवेला गाम चारूपमां बिराजमान श्री पार्श्वनाथ भगवाननी छे. तेना कर्ता कोण छे ? तेनी माहिती जाणमां नथी, परंतु स्तुतिनां पद्यो उपरथी मालूम पडे छे के कोई विद्वान आचार्य भक्ते आ स्तुति करेली छे.
स्तुतिमा यमको आवेलां छे अने तेने लीधे ए एक भिन्न काव्यमय बनेली छे.
यमक नामनो एक अलंकार छे. आ अलंकार शब्दरूप छे. यमकनुं स्वरूप महाकवि वाग्भटे पोताना वाग्भटालंकारमां आ प्रमाणे आपेल छे
"स्यात् पाद-पद-वर्णानामावृत्तिः संयुताऽयुता। यमकं भिन्नवाच्यानामादिमध्यान्तगोचरम् " ॥ २२ ॥
(वाग्भटालंकार ४ परिच्छेद) जे पद्यमा भिन्न भिन्न अर्थवाळा एवा समान अक्षरोवाळा पादोनी, पदोनी अने वर्णोनी वारंवार आवृत्ति देखाती होय तेनुं नाम यमक, आवृत्ति एटले फरी फरीने उच्चारण. आ संयुत आवृत्ति एवी होय छे के जेमां वच्चे बीजु कोइ पद आवतुं होय अने आ अयुत आवृत्ति एवी पण होय छे के जेमां वच्चे बीजुं कोई पद आवतुं होय, वळी आ यमक, आदिमां वच्चे अने अंते पण होय छे, क्यांय आदिमा यमक होय छे, क्यांय मध्यमां अने क्यांय अंतमां पण यमक होय छे. जेमां चारे पाद एक सरखां होय तेने चतुष्पद एवू महायमक कहेवामां आवे छे.
आ स्तुतिमां शरूआतनां बे पद्योमां बीजं अने चोथु पाद आखंय यमकमां छे. वीजा अने चोथा पद्यमा प्रथम पाद अने तृतीय पाद यमकमां छे अने बीजुं अने चोथु पाद पण यमकमां छे. पांचमा पद्यमा प्रथम पाद अने चतुर्थ पाद यमकमां छे तथा बीजा पादमां अने त्रीजा पाद्रमां अनुप्रास अलंकार छे. अनुप्रास एटले "तुल्यश्रुत्यक्षरावृत्तिः अनुप्रासः स्फुरद्गुणः" (वाग्भटालंकार श्लो. १७ चोथो परिच्छेद) अर्थात् जे काव्यमां सरखे सरखा पण भिन्न अर्थवाळा अक्षरोनी वारंवार आवृत्ति होय ते काव्यमां अनुप्रास अलंकार समजवो. एकने एक अक्षरोनी आवृत्ति होय तेनुं नाम तत्पद अनुप्रास अने नोखा नोखा अक्षरोनी आवृत्ति होय तेनुं नाम अतत्पद अनुप्रास. अतत्पद अनुप्रासने छेकानुप्रास कहेवामां आवे छे. अने तत्पद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org