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________________ २० तो भाइ जिणो 'भंडं किं उट्ठाणाइणा इमं होइ ? | किं वाऽणुट्ठाणेणं ? भण भो ! सद्दालपुत्त ! तुमं ॥ २१९ ॥ अणुद्वाणा अपुरिसक्कारेण जायए सद्धं । सो भाइ नियया सव्वे भावा जम्हा भयवं इमं लोए ॥ २१२|| भा (ता) जइ एवं कोई वायाहयभंडगं तु कोलालं । भिंदिज्ज विक्खरिज्जा परिट्ठविज्जा अवहरिज्जा ॥ २१३ ॥ तुह भारियाए सद्धिं जइ कोइ अग्गिमित्ताए । विउलाई भोगाई भुंजइ, किं तस्स कुणसि तुमं ? || २१४ || सो आ अहं भंते ! तं पुरिसं आओसेमि बंधेमि । तज्जिय ताडिय निच्छोडिऊण मारेमि य अकाले ॥ २१५ ॥ भाइ जिणो जइ नत्थी, उट्ठाणाई तहा निययभावा । तो न तुह भंडगाणं अवहरणाई कुणइ कोई || २१६|| नो वा कुणसि तुमं तह आओसणबंधणाई कस्स विय । अह भंडगाइयं तुह अवहरई कोइ जइ पुरिसो ॥ २१७|| जइ वा कुणसि तुमं पि हु आओसण- बंधणाई पुरिसस्स । तम्हा जं जाणसि तुमं 'नियया भाव' त्ति तं मिच्छा ॥२१८॥ तो आजीवियदि च सद्दालपुत्त कुंभकारो । पडिबुद्धो भणड़ जिणं, भयवं ! मे कहसु नियधम्मं ॥ २१९ ॥ भयवं पि साहु - सावयधम्मं परिकहइ महुरवाणीए । पडिवज्जिऊण सावय- धम्मं सो सगिहमणुपत्तो ॥ २२० ॥ पभणइ अग्गिमित्तं, देवाणुप्पिए मए जिणसगासे । पडिवन्नो जिणधम्मो आजीवियदिट्ठ परिहरिउं ॥ २२१ || वच्चसु पिए ! तुमं पि हु रहमारोहिउं जिणं नमसेउं । पडिवज्जसु जिणधम्मं, तो सा परिओसमावन्ना ॥२२२॥ न्हाया कयबलिकम्मा, कयकोउयमंगला सुनेवत्था । रहमारोहिउं गच्छइ नियचेडीवंदपरियरिया ॥ २२३ ॥ अह तिपयाहिणपुव्वं वंदिय पंजलिउडा ठिया चेव । निसुणिय धम्मं पडि वज्जिऊण नियगेहमणुपत्ता ||२२४ || Jain Education International - - - - अनुसन्धान ४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229271
Book TitleAnandadidas Uvasagkathao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrut Patel
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size603 KB
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