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11 भगवान महावीरस्वामी का तप व उसका वैज्ञानिक रहस्य
श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी ने दीक्षा लेने के बाद बारह वर्ष, छः माह व | पन्द्रह दिन तक विभिन्न प्रकार के तप किये । वे इस प्रकार हैं :-- बिना | पानी पीये किये गये छ: माह के उपवास एक बार, पाँच दिन न्यून छ: माह
के उपवास एक बार, नौ बार चार चार माह के उपवास, दो बार तीन तीन | माह के उपवास, दो बार ढाई ढाई माह के उपवास, छः बार दो दो माह के उपवास, दो बार 45-45 दिन के उपवास, वारह दफे एक एक माह के उपवास, बहत्तर बार 15 - 15 दिन के उपवास, 12 अट्ठम (तीन दिन के | उपवास), 229 छट्ट (दो दिन के उपवास), 10 दिन के उपवास की
एक सर्वतोभद्र प्रतिमा, 4 दिन के उपवास की महाभद्र प्रतिमा, दो दिन के | उपवास की भद्र प्रतिमा नामक तप व एक दीक्षा दिन का उपवास ।
श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी के जीवन में से प्रेरणा लेकर आज के युग में भी बहुत से जैन विभिन्न प्रकार के तप करते हैं । ऐसे तप करने का दरअसल में प्रयोजन मोक्षप्राप्ति होती है । तथापि जैन धर्म में बताये हुये तप व उसके प्रकार पूर्णतया वैज्ञानिक है | ___ रात्रिभोजन का त्याग भी आज के युग में एक प्रकार का तप ही है । शरीर विज्ञान की दृष्टि से रात्रि के समय में प्रायः शारीरिक परिश्रम कम होता है अतः पाचन की प्रक्रिया भी मंद हो जाती है । अतएव रात्रिभोजन करनेवालों को ज्यादातर अजीर्ण, गैस (वायु) इत्यादि रोग होते हैं । उस के अलावा सूर्यप्रकाश के अभाव में वातावरण व खुराक में भी सूक्ष्म जीवाणुओं की ज्यादातर उत्पत्ति व वृद्धि होती है । सूर्यप्रकाश में ऐसी विशिष्ट शक्ति है। कि उसके अस्तित्व में वातावरण का प्रदूषण व गैर आवश्यक सूक्ष्म जीवाणु भी खत्म हो जाते हैं । उसमें भी सूर्योदय पश्चात् 48 मिनिट बाद व सूर्यास्त से 48 मिनिट पूर्व भोजन करने का विधान है कयोंकि सूर्योदय व सूर्यास्त के समय मच्छर, मक्खी इत्यादि क्षुद्र जंतुओं का भारी उपद्रव होता|
जैन धर्म के अनुसार वियासणा के तप में सारे दिन में सिर्फ दो बार ही भोजन करने का विधान है । उसमें भी रात्रिभोजन व रात को जल का भी
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