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लेते हैं और, इस प्रकार, उसे 'निमित्त' बनाते हैं । केवल धर्म-अधर्म-आका - काल द्रव्यों के सन्दर्भ में ही ऐसा है कि गति, स्थिति आदि के हेतु उनका प्रयत्नपूर्वक अवलम्ब नहीं लेना पड़ता ।
प्र न १६ : द्रव्यसंयम और भावसंयम के बीच निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है या
नहीं?
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उत्तर : द्रव्यसंयम के बिना भावसंयम नहीं होता, जबकि भावसंयम के बिना द्रव्यसंयम कार्यकारी नहीं होता; कहीं-कहीं दोनों साथ-साथ भी हो जाते हों, परन्तु अधिकांशतः द्रव्यसंयमपूर्वक ही भावसंयम होता है। चरणानुयोग के सन्दर्भ में सर्वत्र यही वस्तुस्थिति है ।
'द्रव्यसंयम धारण करने से भावसंयम हो जाएगा' ऐसा नहीं है; परन्तु भावसंयम के लिये द्रव्यसंयम का होना आव यक है; ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार कि 'देव - स्त्र-गुरु के श्रद्धान से सम्यक्त्व हो जाएगा' ऐसा नहीं है, परन्तु सम्यक्त्व के लिये देव - का श्रद्धान होना आव यक है।
स्त्र-गुरु
बाह्य वस्तु बन्ध का कारण नहीं है, अपितु जीव के द्वारा उठाए गए राग-द्वेशात्मक विकल्प ही वास्तव में बन्ध का कारण हैं। अब चूँकि विकल्प सदैव बाह्य वस्तु का आश्रय लेकर होते हैं, इसलिये विकल्पों के त्याग के लिये बाह्य वस्तु का त्याग आव यक है। यद्यपि बाह्य वस्तु हमारे विकल्पों को पैदा नहीं कराती, तथापि बाह्य वस्तु का अवलम्ब लिये बिना हमारे चित्त में विकल्प नहीं उठते ।