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अतः उक्त कथन उपादान की तैयारी की सम्यक् सापेक्षता
को लिये हुए है। प्र न ६ : निमित्त के अनुसार कार्य होता है या कार्य के
अनुसार निमित्त होता है? । उत्तर : मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में, कार्य के लिये निमित्त होता है
- निमित्त के लिये कार्य नहीं होता। प्र न ७ : क्या एक पदार्थ अनेक कार्यों के लिये भी निमित्त
हो सकता है? उत्तर : हाँ, एक ही पदार्थ को भिन्न-भिन्न व्यक्ति अपने-अपने
उपादान की योग्यता और रुचि के अनुसार भिन्न-भिन्न कार्यों का निमित्त बना लेते हैं। ज्ञानी जीव के लिये जिन-प्रतिमा सम्यक्चारित्र का निमित्त है, सम्यक्त्व के सम्मुख मिथ्यादृश्टि के लिये वह भेदविज्ञान या सम्यग्द नि का निमित्त है, जबकि व्यवहारालम्बी व्यक्ति उसे पुण्यबन्ध का निमित्त बनाता है। कोई ल्पिी पाशाण को नासाग्रदृश्टियुत् आकृति में ऐसी कलात्मक भौली से तरा ता है, मानो कि मूर्तिमन्त भेदविज्ञान सामने उपस्थित हो; तो एक चोर किसी भिन्न ही प्रयोजन से – चोरी के
अ भ प्रयोजन से - प्रतिमा का अवलम्ब लेता है। प्रश्न ८ :जिनबिम्ब में किसी कर्ता-धर्ता, रागी-द्वेषी, काल्पनिक
'ईश्वर' के दर्शन कर लेने वाले व्यक्ति के लिये, क्या ऐसी
अनुकूलता भी जिनबिम्ब में है? उत्तर : ऐसा व्यक्ति कथित देवदर्शन की क्रिया करते समय जिस मनुष्याकृति का अवलम्ब लेता है, वह तो जिनबिम्ब में अवश्य विद्यमान है। परन्तु, उस आकृति के लक्षणस्वरूप नासाग्रदृष्टि, वीतरागता, आत्मलीनता आदि गुणों के विपरीत पड़ने वाले जो कर्ता-धर्तापना अथवा