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समयसार में निमित्त को कर्ता मानने वाले व्यक्ति को सांख्यमतावलम्बी कहा गया है, चाहे वह अर्हतदेव का मतानुयायी मुनि ही क्यों न हो। लोक- व्यवहार में चूँकि उपचार की प्रधानता से ही अधिकांशतः कथन किये जाते हैं, इसलिये वहाँ कह दिया जाता है कि 'फलाँ आदमी ने या फलाँ चीज़ ने हमारा कार्य कर दिया' अथवा 'फलाँ आदमी की या फलाँ चीज़ की वज़ह से हमारा कार्य हो गया'। वहाँ भी सुस्पष्टतया यह समझना चाहिये कि यह सब कथन उपचार है, अतएव अयथार्थ है क्योंकि परवस्तु/निमित्त कभी भी अन्यद्रव्य के कार्य का कर्ता नहीं हो सकता।
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अगर शुरुआत भी करनी है मोक्षमार्ग में, तो हमारे लिये यह नितान्त अनिवार्य है कि जिनसिद्धान्त के आलोक में न्याय, युक्ति और तर्क के आधार पर हम अपनी उन समस्त लौकिक मान्यताओं का भलीभाँति परीक्षण करें, पूरी ईमानदारी और बारीकी से उनका विश्लेषण करें, जिनको कि हम पूर्व-अभ्यासवश, अनजाने या अनायास ही, मोक्षमार्ग के क्षेत्र में आयात ( import ) कर लेते हैं बग़ैर उनकी तर्कसंगति या युक्तियुक्तता का कोई प्रश्न उठाए। और फिर, ऐसे विश्लेषण के निष्कर्षस्वरूप जहां कहीं भी हम पाएं कि हमारी अमुक मान्यता युक्तिसंगत नहीं है, वहीं हम अविलम्ब उसको त्यागने का और उसके स्थान पर उस विषय की सम्यक् व युक्तियुक्त मान्यता को अपनाने का साहस करें। तभी हमारे जीवन में सम्यक् रूपान्तरण के घटित होने की सम्भावना बन सकेगी, अन्यथा नहीं।