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________________ इस प्रकार, पर्यायमूढ़ जीव की अज्ञानता के मूल कारण का विश्लेषण (analysis) कर लेने पर उसका निदान भी सहज ही सूझता है। तर्कसंगत बात है कि द्रव्यदृष्टि के विषय का सही ज्ञान यदि ऐसे जीव को हो जाए तो उसके पर्यायदृष्टि-विषयक ज्ञान ने जिस स्थान पर क़ब्ज़ा कर रखा था, वह स्थान या स्तर उसे द्रव्यदृष्टि-विषयक ज्ञान के लिये खाली करना पड़ेगा; और तब वह (पर्यायदृष्टि-विषयक ज्ञान) अपना उचित स्थान या स्तर द्रव्यदृष्टि - सापेक्ष स्तर ग्रहण करके सम्यक्त्व को प्राप्त हो जाएगा। - $ १.१० द्रव्यदृष्टि - विषयक मिथ्या श्रद्धान का स्वरूप दूसरी ओर, जो जीव द्रव्यदृष्टि का एकान्त पकड़े हुए है पर्यायदृष्टि से निरपेक्ष द्रव्यदृष्टि-विषयक अपने ज्ञान को सम्यक् मान रहा है उसकी स्थिति का विचार करते हैं। ऐसा जीव पर्यायदृष्टि के विषयभूत वस्तु - अंश को अभूतार्थ-असत्यार्थ मानता है, अथवा उसे 'यह तो व्यवहार है, कहने मात्र है; ऐसा है नहीं' इत्यादि प्रकार से मान कर उसकी सत्यार्थता को अपने अंतरंग में स्वीकार नहीं करता। पर्यायें अथवा अवस्थाएं भी आत्म-वस्तु के निजभाव हैं, स्व-तत्त्व हैं, इस सत्य को ऐसा अज्ञानी जीव मंजूर नहीं करता। नतीजा यह होता है कि राग-द्वेषादिक भावों/परिणामों के अपनी आत्मा के अस्तित्व में होते हुए भी यह स्वयं को उनसे रहित मानता है । शरीर का आत्मा के साथ संयोग होते हुए भी यह उस संयोग को मंजूर नहीं करता । पुनश्च द्रव्यकर्म के साथ आत्मा का निमित्त—नैमित्तिक सम्बन्ध होते हुए भी उस सम्बन्ध का अभाव मानने लगता है। ऐसी मान्यताओं के फलस्वरूप, परमार्थ की प्राप्ति तो इसे होती नहीं, इसका व्यवहार-आचरण भी अनर्गल हो जाता है; यह स्वच्छन्द, स्वेच्छानुसारी प्रवृत्ति करने लगता है । अपना ज्ञाता - द्रष्टा स्वरूप तो इसकी पकड़ में आया नहीं, तो भी अपनी मान्यता में राग-द्वेषादिक भावों का अकर्ता बनता है; जो रागादिक शुभ-अशुभ भाव वस्तुतः इसकी आत्मा 9 ―
SR No.229223
Book TitleAtma Vastu ka Dravya Paryayatmaka Shraddhan Samyagdarshan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal
PublisherBabulal
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & Samyag Darshan
File Size78 KB
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